ओमप्रकाश जी, आपने जो समीक्षाएं लिखी हैं, उसे मैं एक सांस में ही पढ़ गया। इसके बावजूद कि मुझे आजकल लघु कहानी भी पढ़ने में कोफ्त होती है। आपने में समीक्षाओं में आलोचनाधर्म व समालोचना शास्त्र का पूरा पालन किया है। इसे पढकर कर मुझे लगा कि हम अपने एक दूसरे साथ काम करने वाले साथियों को ही ठीक से नहीं जानते हैं। उनमें छुपी प्रतिभा को नहीं देख पाते हैं। आपके साथ मैंने अमर उजाला में एक-वर्ष लगाए, वो बेकार गया और मीडिया नारद ने झटके में आपकी प्रतिभा से रू-ब-रू करा दिया। खैर, यह तो ब्लाग की अनंत महिमा की छोटी सी कृपा है।
मुझे लगता है कि इस प्रतिभा का इस्तेमाल हम दिल्ली में होने वाले विश्व पुस्तक मेले का एजेंडा सेट कर सकते हैं। एजेंडा सेट करने का मतलब यह है कि मीडिया नारद से जुड़े साथी हिंदी में पिछले एक साल क्या कुछ लिखा पढ़ा गया है, कितना कूड़ा और कितना सार्थक है। पाठक क्या पढ़ सकता है। आत्मकथाएं, जो इन दिनों प्रचलन में है, के अलावा हिंदी में नया क्या हो रहा है। साहित्य के नाम पर हिंदी में अनुवाद के अलावा विदेश क्या है। कहानी, कविता के अतिरिक्त क्या-कुछ पढ़ा लिखा जा रहा है। प्रकाशन संस्थान क्या कर रहे हैं। दस किताब छाप कर एक प्रकाशक ग्यारहवीं किताब कैसे तैयार कर लेता है। धर्म व योग के नाम पर हिंदी के पाठकों को कैसे जाहिल बनाने का काम प्रकाशक व लेखक कर रहे हैं।
अब यह सब मीडिया नारद में कैसे हो सकता है। इसे जल्द से जल्द तय कर लें, तो विश्व पुस्तक मेले में जब हम जाएंगे, तो मालूम होगा कि कौन सी किताब खरीदनी है और कौन सी पढ़नी है।
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1 comment:
sanjay ji
aap ka sujhav achchha hai. es par kam hona hi chahiye. main taiyar hun.
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