Monday 17 August, 2009

अपनों के जाने पर होता है दुःख

इस दुनिया में जो भी आया है, सबको जाना है। लेकिन जब कोई अपना चला जाता है तो दुःख होना स्वाभाविक है। गोरखपुर अमर उजाला के संपादक आदरणीय मृत्युंजय जी के पिता जी के इस दुनिया से जाने का समाचार मिला तो काफी दुःख हुआ। दो दिन पहले उन्हें हर्दयाघात हुआ और दुनिया से अलविदा कह गए। उमर के भी करीब ७८ पड़ाव पर कर चुके थे। घर में पोते-पोती, दोहते-दोहती सब है। वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए है। दुआ करते है भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे।

Sunday 2 August, 2009

विरोध का यह कौन सा तरीका है

विनोद के मुसान
विरोध के सौ तरीके हो सकते हैं। लेकिन राष्ट ्रीय अभियान को धता बताकर अपने बच्चों को कुछ लोग पोलियो की दवा सिर्फ इसलिए नहीं पिलाते की उनके गांव में सड़क नहीं बनी या उनके यहां बुनियादी सुविधाआें का अभाव है। तो इसे आप या कहेंगे?
उत्तर-प्रदेश में इस तरह के 'विरोध` आम बात होती जा रही है। अशिक्षा का अंधेरा और जागरूकता की कमी ने राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों को उजाले से दूर रखा है। गरीबी रेखा से नीचे दयनीय जीवन व्यापन कर रहे ये लोग नहीं जानते कि ऐसा करके वे कितना बड़ा अपराध कर रहे हैं। इसे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना नहीं तो और या कहेंगे। पहले ही एक विशेष संप्रदाय के लोग (विशेषकर उत्तर-प्रदेश में) कुछ भ्रांतियों को आधार बनाकर पोलियो ड्राप का विरोध करते रहे हैं, लेकिन अब स्थिति और भयावह होती नजर आ रही है। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हमारे देश के प्रशासनिक ढांचे में तमाम 'होल` मौजूद हैं। यहां व्यवस्थाएं हैं, योजनाएं हैं, नीतियां हैं, लेकिन इन्हें क्रियान्वयन करने वाली तमाम शि तयां भ्रष्ट ाचार केदलदल में गले-गले तक दबी हैं। ऐसे में संचालित हो रही योजनाआें का आधा-अधूरा लाभ भी संबंधित लाभार्थियों को नहीं मिल पा रहा है। 
इन हालात में यदि बची-कुची व्यवस्था को भी हम अपने हाथों चौपट कर देंगे, तो कैसे काम चलेगा। देश के नौनिहाल स्वस्थ रहें, वे आगे चलकर एक जिम्मेदार नागरिक बने, इस मंशा को पूरा करने के लिए सरकार तमाम योजनाएं संचालित करती है। राष्ट ्रीय जागरूकता पोलियो अभियान भी इसी मुहिम का एक हिस्सा है। उत्तर-प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी समस्याआें को आगे रखकर अभियान का विरोध तेजी से जोर पकड़ता जा रहा है। यह राष्ट ्रीय चिंता का विषय है। देश के नीति-नियंताआें को इस विषय में गंभीरता से सोचना पड़ेगा। इन क्षेत्रों में जागरूकता के लिए उन बुनियादी बातों को भी जानना जरूरी है, जिनके कारण लोग ऐसा कदम उठा रहे हैं। नहीं तो यह अभियान एक मजाक बनकर रह जाएगा और हमारे बच्चे जागरूकता केअभाव में एक ऐसा जीवन जीने को मजबूर होंगे, जो उन्होंने कभी भी अपने लिए नहीं चुना होगा।