प्रति,
उपाध्यक्ष
हिन्दी अकादमी दिल्ली
प्रिय महोदय
समाचार पत्रों तथा अन्य सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि हिन्दी अकादमी दिल्ली ने मेरे कहानी संग्रह ''मैं हिन्दू हूँ`` को साहित्यिक कृति सम्मान देने की घोषणा की है। इस संदर्भ में मैं निवेदन करना चाहता हूंं कि अकादमी के इस निर्णय ने मुझे और साहित्यिक कृति सम्मान दोनों को संकट में डाल दिया है।
साहित्यिक कृति सम्मान के बारे में अपनी जानकारियो, परम्परा और साक्ष्यों के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि यह प्राय: प्रतिभाशाली, युवा रचनाकारों की कृतियों को दिया जाता है। यह सम्मान एक तरह से नयी और ऊर्जावान प्रतिभा का सम्मान है।
मैं पुरस्कार समिति का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे 'युवा` स्वीकार किया। पर शायद उन्हें यह पता नहीं है कि मैं १५-२० साल पहले युवा था और तब यह पुरस्कार मुझे मिला था। मैं यह भी सोच रहा हूँ कि यह सम्मान मुझ जैसे 'साठे` को न मिल कर यदि वास्तव में किसी युवा रचनाकार को मिला होता तो उसे तरंगित करता और मुझे यह न लगता कि जाने अनजाने यह सम्मान/पुरस्कार देकर हिन्दी अकादमी दिल्ली ने मेरी अवमानना का प्रयास किया है।
इस प्रसंग के अधिक तूल न देते हुए आपसे निवेदन है कि मैं साहित्यिक कृति सम्मान स्वीकार करने में असमर्थ हूँ। मैं यह सम्मान/पुरस्कार इस कारण भी अस्वीकार कर रहा हँू ताकि हिन्दी अकादमी दिल्ली की पुरस्कार समिति भविष्य में पुरस्कार देते समय अधिक सचेत रहे।
सादर।
असगऱ वजाहत
दिनंाक - ११ मार्च २००८
संपर्क : ७९, कला विहार, मयूर विहार-प्ए
दिल्ली - ११००९१
मो. ९८१८१४९०१५
Tuesday, 11 March 2008
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