मीडिया की दुनिया में ईमानदारी और नैतिकता के लबादे के नीेचे बेईमानी और अनैतिकता के बंगले हैं, जिसके कई काले कीड़े रेंगते रहते हैं और अपने ही पड़ोसियों को काटते रहते हैं। वो समझते हैं कि इस पेशे मेंं सीधे और ईमानदार लोग चूतिये होते हैं। इसी पर है मेरी बमबम दृष्टि। कुछ लोग इसे मेरी कुंठा भी मान सकते हैं-
ये चूतियों का शहर है।
कौन किसकी मार लेगा
कह नहीं सकता कोई।
लिखी मक्कारी गांड पर
पढ़ नहीं सकता कोई
लात पीछे पड़ गई तो
कह रहा, ये कहर है।।
ये चूतियों का शहर है।
दीन और ईमान की
खुलकर लगाते बोलियां।
इंसानियत क ेकत्ल को
हैं घूमती ये टोलियां।
वक्त है अजीब सा
रात में दोपहर है।।
ये चूतियों का शहर है।
Monday, 5 May 2008
ये चूतियों का शहर है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
राजीव थपिलयाल कहतें हैं िक मानसून अा गया है( अब मीिडया नारद पर टररटराअाे सभी याराें
राजीव थपिलयाल कहतें हैं िक मानसून अा गया है( अब मीिडया नारद पर टररटराअाे सभी याराें
राजीव थपिलयाल कहतें हैं िक मानसून अा गया है( अब मीिडया नारद पर टररटराअाे सभी याराें
Post a Comment