Sunday 14 September, 2008

राष्ट्रीय अखंडता के लिए राष्ट्रभाषा का सम्मान जरूरी

हिंदी के समस्त पुजारियों, शुभचिंतकों को हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
हर साल की तरह एक बार फिर बहुत से सरकारी विभागों, दफ्तरों में हिंदी दिवस का आयोजन हो रहा होगा। कुछहिंदी तो कुछ अंग्रेजी में भाषण होंगे, शब्दजाल बुने जाने के बाद नाश्ता-पानी का लंबा चौड़ा बिल बनेगा और पूरी होजाएंगी औपचारिकताएं हिंदी को समृद्ध बनाने की। एक ऐसी राष्ट्रभाषा की, जिसे जो चाहे प्रतिबंधित कर दे।आजादी के ६१ वर्षों में राष्ट्रभाषा हिन्दी को इस राष्ट्र में इतना सम्मान भी नहीं मिल सका कि इसे कोई भी राज्य यासंगठन प्रतिबंधित या अपमानित नहीं कर सके।
बापू और लाल बहादुर शास्त्री ने जोर देकर कहा था कि हिंदी ही राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर रख सकती है। लेकिनआजादी के बाद सत्ता का सुख भोगने वालों ने राष्ट्रभाषा की चिंता कभी नहीं की। किसी ने यदि की भी, तो प्रयास ठोससाबित नहीं हुए। यह बात और है कि इस दौरान हिंदी का लगातार विस्तार हुआ है, लेकिन इसके लिए सरकारीप्रयास नहीं बाजार की नीतियां बधाई के पात्र हैं। पिछले कुछ वर्षों में हिंदी के चैनल, एफएम रेडियो और हिंदीअखबारों का अत्यंत तेजी से विस्तार हुआ, वेबसाइट और ब्लाग्स ने हिंदी को कंप्यूटर की भाषा बनाने में मदद की।लेकिन राष्ट्रभाषा आज भी दयनीय स्थिति में ही नजर आती है।
हालत यह है कि महाराष्ट्र में हिंदी में बोलने पर केवल अभिनेत्री जया बच्चन, बल्कि उनके पति सदी केमहानायक कहलाने वाले अमिताभ बच्चन भी बार-बार माफी मांग रहे हैं। (ऐसा महानायक पहले कभी नहीं सुनाथा) मुंबई में व्यापारियों को मराठी में बोर्ड लगाने के लिए मजबूर किया जा रहा है। दूसरी ओर गत सप्ताह हीपंजाब विधानसभा में पंजाब दफ्तरी भाषा संशोधन २००८ और पंजाब में पंजाबी भाषा एवं अन्य भाषाआेंको पढ़ाने संबंधी बिल-२००८ पारित हुआ है। इस संशोधन के बाद पंजाब सरकार के सभी कार्यालयों, सरकारी क्षेत्रके दायरे में आने वाले बोर्ड, कारपोरेशन और लोकल बाडी सहित स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में साराकामकाज पंजाबी में ही होगा। साथ ही स्कूलों में पहली से दसवीं तक पंजाबी पढ़ना अनिवार्य हो गया है। अगर कोईइसका उल्लंघन करता है तो उस पर मोटा जुर्माना किया जाएगा।
इस बात पर किसी को आपत्ति नहीं हो सकती कि महाराष्ट्र में मराठी, पंजाब में पंजाबी को सम्मान मिले। लेकिनभारत में ही किसी प्रदेश में हिंदी बोलने वालों को माफी मांगनी पड़े या किसी प्रदेश में सरकारी कामकाज को सिर्फप्रदेश की भाषा तक सीमित कर दिया जाए, तो राष्ट्रीय अखंडता खतरे में पड़ सकती है। भाषा के आधार पर क्षेत्रीयताके स्वर मुखर होंगे। राज्य के सरकारी दस्तावेज को दूसरे राज्यों के लोग चाह कर भी नहीं पढ़ पाएंगे। कुलमिलाकर एक वृहत राष्ट्र भारत की अवधारणा पर संकट पैदा हो सकता है।
ऐसे में जरूरत इस बात की है कि हिंदी दिवस पर औपचारिकताएं निभाने से ज्यादा कुछ किया जाए। हिंदी कोइतना समृद्ध बनाया जाए, ताकि यह पूरे राष्ट्र में आसानी से स्वीकार्य हो और राष्ट्र को सचमुच एक सूत्र में बांध कररख सके। साथ ही कानून में ऐसे प्रावधान किए जाएं, ताकि किसी प्रदेश में राष्ट्रभाषा अपमानित या प्रतिबंधित हो। हिंदी से जुड़े साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों, नेताओं के साथ-साथ राष्ट्रभाषा के तमाम शुभचिंतकों को इसपर गंभीरता से सोचना होगा।

7 comments:

विवेक सिंह said...

सत्य वचन .

दीपक भारतदीप said...

आपका आलेख बहुत अच्छा लगा। बेहद संजीदगी से आपने अपनी बात रखी है। हिंदी दिवस की आपको बधाई।
दीपक भारतदीप

Udan Tashtari said...

विचारणीय आलेख.

हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

Anonymous said...

इसे बदलना होगा
एक दिन हिंदी दिवस
बाकी दिन अंग्रेजी के

अब मनायेंगे
इंग्लिश डे
सिर्फ वन डे
बाकी दिन 364
हिंदी दिवस।

सुप्रतिम बनर्जी said...

रंजन भाई,
हिंदी की मौजूदा हालत को लेकर आपका जो नज़रिया है, उससे मैं पूरी तरह सहमत हूं। वो चाहे हिंदी की दुर्दशा हो या आतंकवाद का दंश, इन जैसे तमाम समस्याओं के लिए हमारे राजनेता, देश के नीति नियंता ही ज़िम्मेदार हैं। किसी भी कीमत पर गद्दी बचाए रखने की जद्दोजहद में नेताओं के लिए दूसरे सारे मुद्दे गौण हो जाते हैं। फिर चाहे कोई कहीं हिंदी पर पाबंदी लगा रहा हो और कोई कहीं बम फोड़ कर बेगुनाहों की जान ले रहा हो। ऐसे लोगों से सख्ती के साथ निपटने की बजाय नेता सिर्फ़ तुष्टिकरण से काम चलाते हैं।

DB LIVE said...

लोग जानता भी नहीं है िक िहंदी िदवस कब है.
आज की पीढी िहंदी के महत्व भी नहीं जानते.
इस समय में आपने संवेदनशील होकर िहंदी की तरफ आने का अाहृवान िकया
बहुत बहुत बधाई. िहंदी िदवस के अवसर पर हािर्दक शुभकामना

Unknown said...

हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई.