Monday 20 October, 2008

बचाए रखो बिटिया की मुस्कुराहट


कर्मपाल गिल
वह घर कितना भाग्यशाली होता है, जहां बेटी जन्म लेती है। वह मां-बाप भी कितने खुशनसीब होते हैं, जिनकी गोद में प्यारी सी बिटिया होती है। लड़की की खिलखिलाहट, उसका हर काम पूरे घर में उल्लासपूर्ण माहौल बनाए रखता है। बेटी वह देवी है, जो हर समय घर को रोशन बनाए रखती है। इसके बनिस्बत जिस घर में चाहे चार बेटे हों, लेकिन एक कन्या नहीं हो तो, वहां का माहौल उदासीन सा रहता है। घर में वह रौनक दिखाई ही नहीं देती, जो बेटी के होने से होती है। अ सर आंगन सूना-सूना सा नजर आता है।
जब बेटी बड़ी हो जाती है, तो उस पर कई जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं। वह मां के काम में हाथ भी बंटाती है। स्कूल से जब कालेज जाने लगती है तो साथ-साथ जवानी की सीढ़ियां भी चढ़ने लगती है। यह समय बिटिया के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। उसे घर से बाहर इधर-उधर के तानों से बचना होता है। घर की इज्जत भी बचाकर रखनी होती है। लेकिन परमात्मा ने कन्या को ऐसा वरदान दिया है कि इस तरह के अनगिनत गंभीर हालातों का सामना करने के बावजूद वह हर समय खुश नजर आती है। घर में बेटी, बहन का रोल अदा करती है। तो ससुराल में जाने के बाद पत्नी, बहूरानी और भाभी का रोल निभाना पड़ता है।
बेटी के साथ एक और चीज है। वह पापा की बहुत लाडली होती है। हालांकि बेटी अपनी मां के ज्यादा नजदीक होती है। फिर भी जितना प्यार वह पापा से करती है, उतना मां से नहीं करती। वहीं, बाप भी सब कुछ सहन कर सकता है, लेकिन वह बेटी का दुख नहीं देख पाता।
लेकिन दुख की बात यह है कि इसके बावजूद बेटियों को इस धरा पर आने से रोका जा रहा है। यदि वह किसी तरह जन्म ले लेती है, तो झाड़ियों और कू़ड-कर्कट में फेंक दिया जाता है। अस्पतालों के बाहर सरकार और समाजसेवी संस्थाआें द्वारा पालने लगाए जा रहे हैं ताकि जो मां-बाप बेटियों का पालन-पोषण नहीं कर सकते, वह उन्हें इनमें रख जाए। इंसानियत के लिए इससे शर्मनाक शायद और कुछ नहीं हो सकती। साधु महात्मा कहते हैं कि जितना पाप एक हजार गायों को मारने से होता है, उससे भी ज्यादा पाप एक कन्या या कन्या भ्रूण की हत्या से होता है।

1 comment:

bambam bihari said...

जितना पाप एक हजार गायों को मारने से होता है, उससे भी ज्यादा पाप एक कन्या या कन्या भ्रूण की हत्या से होता है।