Monday, 17 August 2009
अपनों के जाने पर होता है दुःख
इस दुनिया में जो भी आया है, सबको जाना है। लेकिन जब कोई अपना चला जाता है तो दुःख होना स्वाभाविक है। गोरखपुर अमर उजाला के संपादक आदरणीय मृत्युंजय जी के पिता जी के इस दुनिया से जाने का समाचार मिला तो काफी दुःख हुआ। दो दिन पहले उन्हें हर्दयाघात हुआ और दुनिया से अलविदा कह गए। उमर के भी करीब ७८ पड़ाव पर कर चुके थे। घर में पोते-पोती, दोहते-दोहती सब है। वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ गए है। दुआ करते है भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे।
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2 comments:
गिल जी, हम हम उन्हें जानते है. आपने उनका नाम नहीं लिखा है- उनका नाम योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश है और हमारे क्षेत्र की भाषा मगही के वे महाकवि माने जाते थे. सबसे बड़ी बात है की उनकी पहचान मृत्युंजय से नहीं है, वे खुद में बहुत बड़ी शख्शियत थे.
Itne samay se main mrityunjay ji se juda hoon.Lekin mujhe aaj pata chala ki ve ek badi shakhsiyat ke putra hain.Yah dukhad suchna mujhe 2 din baad mili thi.Gyanwardhan ke liye nandan ji ka dhnyawaad..
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