Friday, 9 August 2013

चंद्रमुखी की ना-नुकुर

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चिंटू के मम्मी-पापा के बीच अकसर झगड़ा होता। झगड़ों के बाद दोनों अपने को सही ठहराते। लेकिन बात किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचती। ऐसे ही एक झगड़े के बाद चिंटू के पापा ने खुद को सही और पत्नी को गलत साबित करने के लिए एक दिन एक दंपति की कहानी सुनाई।
कहानी कुछ ऐसी थी…
रामलाल जब भी अपनी पत्नी चंद्रमुखी से कोई काम कहता, चंद्रमुखी उस काम का उल्टा ही करती। रामलाल कहता, आज मैं खीर खाऊंगा तो चंद्रमुखी खिचड़ी बना देती।
रामलाल कहता आज मुझे भूख नहीं है, मैं दो ही रोटी खाऊंगा तो चंद्रमुखी उसे ठूंस-ठूंसकर चार रोटी खिला देती।
रामलाल कहता आज हम बच्चों के साथ घूमने जाएंगे, चंद्रमुखी कहती आज नहीं कल।
चंद्रमुखी की ना-नुकुर से जब रामलाल आजिज आ जाता तो कहता- चंद्रमुखी तुम इस बार मायके नहीं जाओगी। ..और चंद्रमुखी झट से उसी दिन तैयार होकर मायके चली जाती।
आखिर चंद्रमुखी की यही नकारात्मक सोच उसे एक दिन ले डूबी।
दोनो यात्रा पर थे। रास्ते में बहती एक नदी में नहाने के लिए रुके।
रामलाल- चंद्रमुखी घाट की सीढ़ियों पर ही नहाना…।
चंद्रमुखी- न मैं तो आगे जाकर ही नहाऊंगी।
रामलाल- अच्छा ज्यादा आगे मत जाना…।
चंद्रमुखी- न मैं तो और आगे जाकर ही नहाऊंगी।
रामलाल- अरे भई…आगे पानी का बहाव तेज है, तुम फिसल जाओगी…।
चंद्रमुखी- न मैं तो बीच नदी में जाकर ही नहाऊंगी…।
..और ना-ना करते-करते चंद्रमुखी नदी के तेज बहाव में बह गई।
तुम सारे मर्द होते ही एक जैसे हो…
अपनी पत्नी की ना-नुकुर पर एक-दो बार मैंने उसे भी यह कहानी सुनाई। पहली प्रतिक्रिया तो यही थी, तुम मर्द होते ही एक जैसे हो…हमारी कही हर बात तुम्हें बुरी लगती है। तुम भी यही चाहते हो न, मैं भी किसी नदी में डूब जाऊं।
लेकिन, कई बार लंबे चलने वाले झगड़े को इस कहानी ने वक्त से पहले ही सुलझा दिया। पत्नी मुस्कुरा देती है… और कहती, तुम नहीं सुधरोगे।
बात मुद्दे की
चिंटू के पापा की सुनाई कहानी सुन ली। हम पति-पत्नी के बीच कैसे सुलह हुई, यह भी जान लिया…अब क्या? मुद्दे की बात तो हुई ही नहीं। आखिर मुद्दा क्या है। अगर, आप कुछ ऐसा ही सोच रहे हैं तो चलो आपको मुद्दे की बात भी बताते चलें- मुद्दा है ‘ना-नुकुर’।

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