Monday, 8 June 2009

मीडिया के चुतियापे का समय

यह मीडिया के चुतियापे का समय है। इस शब्द का इस्तेमाल इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि अपनी हरकतों से मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो रहा है। चुनाव में हिन्दी के कई ..बड़े अख़बारों ने पैसे लेकर विज्ञापन नुमा न्यूज़ छापी। पाठकों को बेवकूफ समझा। एक ही पेज पर एक ही साथ कई लोगों को जिताया. जाहिर है की पाठक उनकी पिछवारे पर आज नहीं तो कल लात मारेंगे । भला हो अमर उजाला का जिसने कई दिक्कतों के बावजूद इस चुनाव में पैसे लेकर खबरें छापने से इंकार कर मीडिया की इज्जत बचायी।

कई संसथान संपादको की जगह मैनेजरों को बिठाकर कबाडा कर रहे है। कई रिपोर्टरों को विज्ञापन के टारगेट दे रहे हैं और वे भी परम कुत्ता भाव से खबरों की जगह क्लाइंट को सूंघते फ़िर रहे है। कई पत्रकार की जगह दलाल या लाइजनर बन गए है। तो मीडिया को बेडा गर्क होने से कौन बचायेगा।

3 comments:

संदीप said...

आज की राजनीति की तरह यह व्‍यावसायिक मीडिया भी पूरी नंगई पर जो उतर आया है।

Unknown said...

जागरण और हिंदुस्तान ने सबसे ज्यादा नरक मचाया. उसके पत्रकारों को भी मोटा कमीशन मिला. कई ने तो मालिकों को भी चोर के घर मोर की तर्ज पर चूना लगाया.

kps gill said...

sahi baat kahi hai aapne. patrakarita ko bachane ke liye amar ujala ko bhadhai.