Monday 28 July, 2008

चारो तरफ मचा है हाहाकार


अचानक चीक पुकार, चारों तरफ मचा जब हाहाकार,
बम के धमकों के साथ बुझ गए कितने घरों के चिराग।
मासूम बच्चों के साथ-साथ बाप का सहारा था कोई,
क्या इसी तरह जारी रहेगी देश में आतंक की आग।
न जाने कल किस घर को लील लेगी यह हवा,
कल बंगलुरू तो आज जल उठा अहमदाबाद ।
साप निकल जाने के बाद लकीर पीटने की आदत है पुरानी,
हमेशा से अलापा जा रहा है वहीं सदियों पुराना राग।
रोजाना सुबह अखबारों के पहले पन्ने भी भरते है इससे,
कब तक घरों को चिरागों को लीलती रहेगी आतंक की आग।
सूख जाते है मां-बाप के आंखों के आंसू भी रो-रो कर,
पर नहीं थम रही देश में बहती यह नफरत की बुछार।