Wednesday, 30 July 2008
बयान जारी कर दूं 'सर`
नेता जी अपनी पर्सनल कुर्सी पर बैठे संसद में नोटों की गडि् डयां उछालने के बाद हुए घाटे के बारे में सोच ही रहे थे कि इतने में सेके्रटरी ने आकार बताया। सर! फंला-फंला राज्यों में बम धमाके हो गए। बयान जारी करना चाहिए। लेकिन, नेता जी इससे भी जरूरी मसले पर मंथन करने में मशगूल थे। वे सोच रहे थे, इस बार तो तीन सिरफिरे सांसदों ने संसद में नोटों की गडि् डयां उछाल कर पूरा खेल ही खत्म कर दिया। मेरी तो २५ कराे़ड में डीलिंग लगभग तय हो चुकी थी। पर, कमबख्तों ने ऐन मौके पर खेल बिगाड़ दिया। अब पिछले साढ़े चार सालों में इमेज भी कुछ ऐसी बनी है, अगले चुनाव में पहले तो टिकट मिलेगा नहीं और अगर मिल भी गया तो जनता मुझे घास डालेगी नहीं। लगे हाथ जाते-जाते कुछ कमाई हो जाती तो अगले कुछ साल आराम से कट जाते। इतने में सेके्रटरी ने फिर नेता जी को संबोधित किया। सर आपने कुछ बताया नहीं, या करना है? नेता जी ने भी मुंह में भरे मसाले की पिचकारी टेबल के नीचे रखे पीपदान में मारी और सेके्रटरी को घूरने वाली नजरों से देखते हुए कहा। जितनी देर तुमने मेरा दिमाग खाया है, इतनी देर अगर तुम पुराना जारी किया बयान ढूंढने में लगाते तो वह अब तक अखबार के दफ्तरों में पहुंच भी जाता। या तुम्हें पता नहीं इस देश में बम फटना अब आम बात हो गई। प्रेस वाले भी बिना विज्ञप्ति पहुंचाए ऐसे मौकों पर खुद-ब-खुद ही हमारी ओर से बयान जारी कर देते हैं। फिर तुम तो कई सालों इस 'जीव` के साथ काम कर रहे हो। बेटा शियासत के बाजार में जनतंत्र, लोकतंत्र और प्रजातंत्र के बाद अब नया उत्पाद आया है 'नोटतंत्र`। मुझे इस नए विज्ञान के बारे में सोचने दो। बम-वम तो फटते रहते हैं। आज न सही कल बयान जारी कर देंगे। वैसे भी इस काम में हमारी बिरादरी के अन्य जीव बहुत तेज हैं, अब तक वे सारा काम कर चुके होंगे। उन्हें पता है कि देश में ये काम कौन लोग कर रहे हैं। वह उनको राजनैतिक भाषा में अब तक गाली भी दे चुके होंगे, आंसू भी बहा लिए होंगे, संवेदना....बगैरा-बगैरा सबकुछ कर चुके होंगे। अब तुम बम-वम की बात छाे़डो और ये सोचो आने वाले चुनाव में किस पार्टी की गोद में बैठना है। वैसे भी विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि मुझे पार्टी लाल कार्ड दिखाने जा रही है। इस बात की चिंता करो कि मैं फिर से सांसद बनकर कैसे नोटतंत्र का चिंतन करूं। इतना सुनने के बाद भी जब सेके्रटरी वहीं खड़ा रहा तो नेता जी ने सोचा बच्चे को थाे़डा और ज्ञान दे ही दिया जाए। नेता जी बोले, हम भारतीय हैं। अहिंसा परम धर्मम् । हम अमेरिका जैसा अधर्म वाला काम नहीं कर सकते। उसके यहां दो धमाके या हुए। उसने दुनिया के न शे में दो देशों का तख्ता ही पलट दिया। हम गांधी जी के देश में रहते हैं, पहले एक राज्य में बम फाे़डा अब दूसरे में कल तीसरे में...। या फर्क पड़ता है। हम सौ कराे़ड की आबादी पार कर चुके हैं। थाे़डा बहुत कम हो भी जाएं तो या हुआ। चिंता इस बात की करो कि राजनीति की इस बिसात में अब कौन सी गोटी चली जाए, ताकि मैं फिर से सांसद बन जाऊं और देशकाल के चिंतन में डूब जाऊं।
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