छोटी-छोटी बातों पर बयान जारी करने वाले हमारे नेता जम्मू-कश्मीर के हालात पर मौन हैं। जबकि, बात यहां तक आ पहुंची है कि श्रीनगर में हमारे राष्ट ्रीय ध्वज का अपमान किया जा रहा है। वहां की इमारतों पर पाकिस्तान का झंडा लहराया जा रहा है। तुष्टि करण की राजनीति का शिकार देश के नेता इस मसले पर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं। उन्हें डर है उनके मुंह से निकले कुछ शब्द उनके वोट बैंक में सेंधमारी का कारण न बन जाएं। जबकि, जम्मू के हालात दिन-ब-दिन बदतर होते जा रहे हैं। जमीन के एक टुकड़े के लिए दो संप्रदायों के लोग आमने-सामने हैं। मीडिया में आ रही खबरों में साफ दिखाई दे रहा है कि वहां का आम आदमी इस दिनों किन हालात में जी रहा होगा। भूमि हस्तांतरण मुद् दे की आड़ में राजनीतिक रोटियां सेेंकी जा रही हैं। आम आदमी को हथियार बनाकर इस्तेमाल किया जा रहा है। इस मुद् दे की आड़ में उन तमाम बातों को अंतरराष्ट ्रीय मंच पर लाने का प्रयास किया जा रहा है, जिनकी कोशिश पहले भी कई बार होती रही हैं। बात साफ है अलगावादी लोग इस बात को उछालना चाहते हैं कि कश्मीर में मुसलमान खुश नहीं हैं, उन पर अत्याचार हो रहे हैं। दूसरा, वे कश्मीर के सामाजिक, राजनैतिक और धार्मिक ताने-बाने को एक पंथीय रूप देना चाहते हैं। कश्मीर के लोगों को भी इस देश केप्रत्येक नागरिक की तरह वे सभी अधिकार प्राप्त हैं, जो भारतीय संविधान में दर्ज हैं। लेकिन, कुछ अलगाववादी लोग धर्म की आड़ लेकर वहां की जनता को बहका रहे हैं। उनका एक ही मकसद है, भारत की अंखडता को छिन्न-भिन्न करना। वे नहीं चाहते की इस देश में एकता कायम रहे।
मेरा मानना है कि इस मुद् दे पर देश के बौद्धिक वर्ग को आगे आकर पहल करनी चाहिए। हिंदू-मुसलमान भाईचारे को कायम रखते हुए दोनों सुमदाय केलोगों को मिलजुलकर विवाद को सुलझाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर आज नहीं, आजादी केबाद से ही जल रहा है। इसका स्थायी समाधान है, लेकिन राजनैतिक लोगों से इसकी अपेक्षा करनी बेमानी है। योंकि अगर जम्मू-कश्मीर और वर्तमान भूमि हस्तांतरण जैसे मुद् दे समय पर सुलझा लिए गए, तो कई राजनेताआें की दुकाने बंद हो जाएंगी।
दूसरा राष्ट ्रीय स्वाभिमान के प्रतीक तिरंगे का अपमान करने वाले को कतई बख्शा नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वह किसी समुदाया का यों न हो। इसी तिरंगे की आन बचाने को हमारे फौजी आए दिन सीने पर गोलियां खाते हैं। लेकिन, तिरंगे को जमीन पर तक नहीं गिरने देते। फिर यह बात कैसे बर्दाश्त किया जा सकत है कि कोई इसी देश में रहते हुए देश के झंडे को जलाए। मुजफ्फराबाद रैली के दौरान और आगे-पीछे भी जम्मू-कश्मीर पर देश की जनता ने टीवी और समाचारों पत्रों में तिरंगे को जलाने की तस्वीरें साफ देखीं। उनकी मुठि् ठयां भिंच गइंर्। लेकिन, वे चाहकर भी कुछ नहीं कर सकते। योंकि यह खेल आम आदमी की पहुंच से बाहर है। देश का आम आदमी खिन्न है, वह धरना-प्रदर्शन तो कर सकता है, चिल्ला सकता है, लेकिन उसके हाथ में वह ताकत नहीं है, जो सीधे तौर पर ऐसे लोगों को मुंहताे़ड जवाब दे।
Monday, 18 August 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment