Thursday, 14 August 2008

शाहरुख से आप क्या अपेक्षा कर सकते हैं?


वेद विलास उनियाल -----------
एक बेहूदा सा दृश्य , मनोज कुमार के रूप में एक पात्र को दिखाकर न जाने फिल्म निर्माता और उसके बड़े कलाकार अपनी कौन सी कुंठा पूरी कर रहे हंै। एक और दृश्य, एक कलाकार गर्व में हाथ लहराकर अपने को किंग ( बादशाह खान) कह रहा है उसके चेहरे में कलाकार के भाव नहीं, बल्कि दुनिया को रौंदने वाले सिकंदर के किसी सेनापति जैसा गरूर झलकता है। यही व्यक्ति फिल्म के पर्दे पर हाकी का कोच बनता है, उसे मालूम है कि हाकी की दुर्दशा और पिछली एक घटना को आधार बनाकर बनी फिल्म से पैसा आएगा। अच्छा ब्लैकमेल है। लेकिन असल जिंदगी में वह क्रिकेट को मदद (जिस खेल को मदद की जरूरत ही नहींं है) करता नजर आता है। । उसे आप अपनी टीम को डांटते डपटते देख सकते हैं। खेल भावना में हार जीत की कोई बात नहीं कीजिए। वह विशुद्ध दूसरे कारणों से टीम चला रहे हैं। आयोवा, जीतोवा का नारा मस्ती के लिए नहीं, इस नारे से शाहरुख को किसी भी तरह बस जीतना था। जीतना उनके लिए मुनाफा है। हारना सदमा। नहींं जीते तो डांट खाओगे।
शाहरुख इतने भर से भी समझ मेंं नहीं आते। उन्हें पता है कि अपनी क्षमताआें में अमिताभ बच्चन के बराबर दिखना है तो उनके बारे मेंं जो मन आए बोले। यही नहींं गिन गिन कर अजीबो गरीब काम किए। डान बने, खाइके पान बनारसी वाला की भ ी रिमेक की। देवदास बनकर फिल्म प्रेमियों को बताना चाहा कि सहगल और दिलीप कुमार को भूल जाओ केवल शाहरुख की है देवदास। देखने वालों ने देखा दिलीप कुमार के पासंग भर भी नहींं थे वह। शाहरुख हर चीज का रिमेक कर सकते हैं नकल कर सकते हैं पर कहींं चुप होना पड़ेगा तो यहीं कि अमिताभ तो मधुशाला केरचियता डा. हरिवंश राय बच्चन के बेटे हैं। शाहरुख होशियार हैं इस संदर्भ को नहींं उठाते हैं। यह अलग बात है कि अमिताभ की तरह वह भी कविता बांचते नजर आ जाएं। अपने पिता की कविता न सही किसी और की। हो सकता है कि रोबर्ट बडेरा की लिखी कोई पोएम ही सुना दे।
मगर हम यहां किसी ओर संदर्भ में शाहरुख खान की चर्चा कर रहे हैं। वह अपने को फिल्म जगत के आधुनिक किंग कह सकते हैं। पर वह अपने भारत मनोज कुमार कभी नहीं हो सकते। बहुत संवेदनशील इंसान हो तब शहीद और उपकार जैसी फिल्म बनती हैं। मनोज कुमार को लाल बहादुर शास्त्री समझ सकते थे। शाहरुख खानों की समझ में वह नहींं आएंगे। जितना शाहरुख का दायरा है उसमें वह उन्हीं बेजा हरकतों को कर सकते हैं जिसके लिए वह जाने जाते हैं। बात उनके किसी स्क्रिप्ट को चुरा कर फिल्म बनाने की नहीं। यह तो फिल्म दुनिया मेंं अब आम बात है। पश्चिमी संगीत को चुरा -चुरा कर बड़े संगीतकार बने हुए हैं। नए लिखाड़ों को अपने यहां दो तीन हजार की नौकरी देकर उनकी िस् ्रप्ट को अपनी बताकर लेखक बने हैं। गीत दूसरों के नाम अपना यह काम शैलेंद्र के जमाने से ही कई लोग करने लगे थे। शाहरुख यह सब करते तो चलता पर मनोज कुमार पर भ ा फिल्मांकन कर एक तरह से वे मनोज का नहीं भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी अपमान कर रहे हैं। पूरा भारत जानता है कि शास्त्रीजी मनोजकुमार को कितना प्यार देते थे। पर शाहरुख खान इसे नहीं समझ सकते। फिल्म कला उनके लिए नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं। इसलिए वह खुद में भी जगह जगह नौटंकी ही करते आते हैं। शाहरुख को बड़बोला होने से पहले शहीद फिल्म को दस बार देखना चाहिए। उनकी मति ठीक हो जाएगी। बरना यही बंदरों की तरह हरकत करते रहेंगे।
इसी तरह की कुंठा पाले एक और प्रोफेसर हैं जो हर वर्ष शैले्ंद्र की स्मृति मेंं होने वाले कार्यक्रम मेंं पहुंच जाते ह,ैं माफ कीजिए बुलाए जाते हैं। आयोजकों से उनके ठीक ठाक संबंध है। कुछ चटपटा भी बोलते हैं। इसलिए उनसे ड़ेढ घंटा बुलवाया जाता है। शैलेंद्र पर कम मनोज कुमार पर ज्यादा बोलते हैं। लगभग अपमानित करते हुए। ऐसे ही लोग आज के समय पनप रहे हैं। कहींं शाहरुख तो कहींं ये माननीय प्रोफेसर। चलिए इन दोनों की छोड़िए। आप और हम एक ऐसा यादगार गीत गुनगुनाए। ये मेरे प्यारे वतन तुझपे दिल कुरबान। कुछ मन को और अच्छा कर लें -- मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती।

1 comment:

Anonymous said...

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती...