Monday, 28 July 2008

उदासीन और लापरवाह मानसिकता से बाहर निकलना होगा

पिछले कई महीनों से पंजाब से लेकर हरियाणा और उत्तर प्रदेश में रेलवे स्टेेशन और धार्मिक स्थल उड़ाने की धमकी भरे पत्र मिलते रहे हैं। एक-दो बार इन पत्रों को गंभीरता से लिया गया लेकिन जब कोई वारदात नहीं हुई तो ऐसे पत्रों को गंभीरता से नहीं लिया जाने लगा। माना जाने लगा तो कि यह तो रोज का काम हो गया है। लेकिन आतंकी हमारी इसी मानसिकता का लाभ उठाते हैं। आज यदि देश में धमाके दर धमाके हो रहे हैं और हमारी सरकार, प्रशासन व समाज असहाय से दिखाई दे रहा है तो इसके पीछे हमारी यही मानसिकता है। हमारी लापरवाह संस्कृति हमारे लिए घातक सिद्ध होती जा रही है। लेकिन हम हैं कि इससे कोई सबक नहीं सीख रहे हैं। सजगता और सतर्कता न तो हमारे समाज में रह गई है और न ही पुलिस प्रशासन और खुफिया एजेंसियों में। यही कारण है कि नापाक इरादे वाले आतंकी जहां चाहते हैं और जब चाहते हैं धमाके कर देते हैं।
पिछले कई धमाकों के बाद उसमें संलिप्त लोग पकड़े नहीं गए। जिससे यह साबित होता है कि हमारा खुफिया तंत्र और प्रशासन बुरी तरह से नाकारा हो गया है। विस्फोट करने वालों को तो छोड़िए धमकी भरे पत्र लिखने वालों तक को हमारी पुलिस नहीं पकड़ पाई है। ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम सुरक्षित हैं?
कहीं पर बम धमाके होते हैं तो तुरंत राजनीति शुरू हो जाती है। कहा जाता है कि हमारे देश में आतंकवाद से लड़ने के लिए कड़ा कानून नहीं है इसलिए आतंकी वारदातें हो रही हैं। सवाल उठता है कि जो कानून है उसके तहत तो आप कार्रवाई करें। यदि उसी के तहत सजग और सतर्क रहें तो ऐेसे कानून की जरूरत नहीं पड़ेगी जिसका अधिकतर दुरुपयोग ही होता है। लेकिन इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया जाता। राजनेता बयान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। समय आ गया है कि आतंकवाद से लड़ने के लिए आम जनता को ही सजग होना पड़ेगा। उसे सतर्क और चौकस रहना पड़ेगा तभी उसकी सुरक्षा हो पाएगी। यदि आम जनता चौकस रहने लगी तो समाज में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों पर लगाम लग जाएगी और सुरक्षा एजेंसियों की मजबूरी हो जाएगी कि वह सजग रहें और समय पर कार्रवाई करते हुए देश और समाज की रक्षा करें। हमें उदासीन और लापरवाह मानसिकता से बाहर निकलना होगा।

2 comments:

Anonymous said...

omparkash ji, is desh me lashon par hi rajniti ki fasal ugti hai. fir chahe ve lash bhookh se kalahandi me paida hui ho, sookhe se bundelkhand me ya fir ki aantakvadi hamle me. matdan ki behtar fasal ke liye aam aadmi ko hamesha khad ke roop me istemal kiya jata rahega. hum logon ki udasin maansikta huqmrano ko aur jyada laparvaah karti hai. dharmvir

ओमप्रकाश तिवारी said...

Theek kaha Aap Ne.

Kahan Hain Aajkal.

Kaise Hain.