पहले वह रंग थी
फ़िर रूप बनी
रूप से जिस्म में तब्दील हुई
और फ़िर ....
जिस्म से बिस्तर बनके
घर के कोने में लगी रहती है
जिसको कमरे में घुटा सन्नाटा
वक्त बे -वक्त उठा लेता है
खोल लेता है, बिछा लेता है
निदा फाजली
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1 comment:
आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.
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