Tuesday, 19 August 2008

पहले वह रंग थी
फ़िर रूप बनी
रूप से जिस्म में तब्दील हुई
और फ़िर ....
जिस्म से बिस्तर बनके
घर के कोने में लगी रहती है
जिसको कमरे में घुटा सन्नाटा
वक्त बे -वक्त उठा लेता है
खोल लेता है, बिछा लेता है

निदा फाजली

1 comment:

Udan Tashtari said...

आभार इसे यहाँ प्रस्तुत करने का.