Saturday 5 July, 2008

धर्म की आड़ में सियासी साजिश

जल उठा जम्मू-कश्मीर। आग और भड़की। जाम और तोड़फोड़। हिंसा की चिनगारी दूसरे प्रदेशों तक पहुंची। देशव्यापी बंद और आंदोलन। मामले पर चढ़ा सांप्रदायिक रंग। कई शहरों में कफ्र्यू। फायरिंग में कई जानें गइंर्। मुद्दा अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन आवंटित करने और फिर एक धर्म के लोगों के विरोध के बाद वापस लेने का। किस पक्ष को सही कहें, किसे गलत।
धर्मांधता के इस उबाल में पीछे छूट गइंर् बाबा बर्फानी के भ तों की दुष्वारियां। हजारों किलोमीटर दूर से हजारों रुपये खर्च कर पिछले कुछ दिनों के दौरान जम्मू पहुंचे शिव भ त वहां से आधार शिविर तक जाने-आने में झेली परेशानियों को आजीवन याद रखेंगे। सालों से बुनियादी सुविधाआें को तरसते श्रद्धालुआें को श्राइन बोर्ड की जमीन से कितनी राहत मिल जाएगी, यह समझ से परे है। दूसरी ओर सरकारी जमीन का एक टुकड़ा प्रदेश की एक ऐसी महत्वपूर्ण धार्मिक यात्रा को आवंटित करने, जो प्रदेश के हजारों लोगों की आजीविका से जु़डी है, से किसी को या आपत्ति हो सकती है यह भी एक बड़ा सवाल है।
जिस तरह से आनन-फानन में कई राजनीतिक पार्टियां इस मु े को भुनाने के लिए मैदान में कूदी है, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि धर्म की आड़ में यह एक सियासी साजिश है, जिसका मकसद आम लोगों का ध्यान महंगाई और विकास जैसे बुनियादी मुद्दों से हटाना है। गौर करने वाली बात यह भी है कि जम्मू-कश्मीर में भड़की आग की 'रोशनी` में सीमा पर घुसपैठ की कोशिशें तेज हो गई हैं। आखिर कौन दोषी है इस आग के लिए। जब तक आम लोग धार्मिक चादर में छिपे इंसानियत के ऐसे दुश्मनों को नहीं पहचानेंगे, यह आग ऐसे ही लोगों की जानें लेती रहेगी, कभी जम्मू, कभी श्रीनगर, कभी इंदौर तो कभी आपके शहर में।

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