Friday 8 August, 2008

सिमी से इतना मोह यों ?

एक समाचार : सुप्रीम कोर्ट ने स्टूडेंट् स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) पर प्रतिबंध हटाने संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट के विशेष ट्रिब्यूनल के आदेश पर रोक लगा दी।
अब आगे का खेल देखिए, अभी यह फैसला अदालत से बाहर भी नहीं आया था, हमारे राजनीतिज्ञों ने सिमी के हक में बयान तक जारी कर दिए। सपा प्रमुख मुलायम सिंह की मानें तो सिमी पर प्रतिबंध लगाने की बजाए राष्ट ्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। उनकेशब्दों में 'जब उत्तर प्रदेश में मेरी सरकार थी तो सिमी पर कभी प्रतिबंध नहीं लगाया गया।` वहीं राजनीतिज्ञों की जमात में इस विद्या के पंडित कहे जाने वाले 'ताऊ` लालू प्रसाद यादव का कहना है कि सिमी पर प्रतिबंध की जरूरत ही नहीं थी। प्रतिबंध लगाना ही है तो शिव सेना पर लगाओ, दुर्गा वाहिनी पर लगाओ।
इस संगठन का नाम (सिमी) देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर इसलिए नहीं चढ़ा कि इस संगठन ने अपने नाम के अनुरूप स्टूडेंट् स की भलाई के लिए किए गए अपने कामों से झं़डे गाढ़ दिए। बल्कि जब भी इस संगठन का नाम सुर्खियों में आया, तब-तब सिमी के साथ आतंक शब्द की गूंज साफ सुनाई दी। आज भी यह संगठन भारत में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने वाली एक प्रमुख संस्था के रूप में जाना जाता है। देश में घट रही तमाम आतंकवादी घटनाआें में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के बाद अगर किसी संगठन का नाम आता है तो वह सिमी ही है। जो इस्लामिक स्टूडेंट् स मूवमेंट् स केनाम पर इस देश की नौजवान पीढ़ी की रगों में दहशतगर्दी का जहर घोल रही है। इस देश का राशनकार्ड लेकर इस देश की थाली में खाकर इसी देश केनौजवानोंं को बाढ़ बनाकर इस संगठन केकार्यकर्ता देश को खोखला करने में जुटे हैं।
ऐसे में अगर हमारे राज नेताआें के बयान इस संगठन के हक में आते हैं तो दुख होता है। दुख होता है यह सोचकर कि आखिर इस देश में हो या रहा है? जनता इन नेताआें को चुनकर संसद में भेजती है। इसलिए कि वे जनहित की बात करेंगे, देशहित की बात करेंगे। लेकिन, अगर राजनीति से प्रेरित इस तरह के काम हमारे राजनेता करने लगें तो फिर अभागी जनता कहां जाए?


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