विनोद के मुसान
ऋषिकेश की हृदयस्थली और प्रमुख आस्था केंद्र त्रिवेणी गंगा घाट पर 13 जून की सुबह श्रद्धालुओं और गंगा सेवा समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं ने जापानी पर्यटकों के दल के एक गाइड की जमकर धुनाई कर डाली।
आरोप था कि सप्ताह भर से त्रिवेणी घाट पर सुबह सवेरे जापानियों का यह दल पश्चिमी सभ्यता की तर्ज पर नंगधडग़ होकर गंगा की लहरों में मौज-मस्ती करने आ रहा था। जिससे आस्था के इस केंद्र में श्रद्धालु खुद ही शर्मिंदा हो रहे थे। उन्हें देखने के लिए यहां मनचलों की भीड़ भी लग जाती थी। पुलिस प्रशासन का तो इस ओर ध्यान नहीं गया, लेकिन स्थानीय लोगों ने विदेशियों के स्वदेशी गाइड को इस तरह की हरकतों से बाज आने को कहा। लेकिन वह नहीं माना। रविवार को सुबह जैसे ही गाइड विदेशी पर्यटकों को लेकर त्रिवेणी पहुंचा। गंगा सेवा समिति से जुड़े कार्यकर्ताओं ने गाइड की जमकर धुनाई कर दी।
घटना के बाद सवाल उठना लाजमी है कि यह कितना सही है और कितना गलत? एक ओर जहां हम पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए तमाम योजनाएं चलाते हैं, वहीं दूसरी ओर उनके साथ इस तरह का व्यवहार कहां तक सही है?
ऋषिकेश शुरू से ही विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। विदेशी सैलानी यहां आकर गंगा तट पर अपार शांति प्राप्त करते हैं। टू-पीस बिकनी में गंगा तटों पर लेटे सन-बाथ लेना और अठकेलियां करना उनके लिए आम बात है। स्थानीय लोग भी पश्चिमी सभ्यता के इस रूप से भली-भांति परिचित हैं। इसलिए उन्हें कोई परेशान भी नहीं करता। वे स्वच्छंद रूप से गंगा तटों पर इसी तरह विचरण करते हैं। लेकिन दिक्कत तब होती है, जब ये सैलानी आस्था के उन घाटों पर इस तरह का व्यवहार करते हैं, जहां हिंदू संस्कृति इस बात की इजाजत नहीं देती।
हिंदुओं के लिए गंगा जल में स्नान करना आज भी कई जनमों में कमाए गए पूण्य के समान है। जबकि कुछ सैलानी इन घाटों पर ठीक उसी तर्ज पर स्नान करने उतरते हैं, जैसे फाइवस्टार होटल के किसी स्विमिंग पूल में।
मतलब साफ है, आप हमारे देश में आइए, आपका स्वागत है। घूमिए-फिरिए, खूब मौज-मस्ती किजिए, लेकिन ध्यान रखिए किसी की धार्मिक भावनाएं आहत न हों।
हम आज भी अतिथि देवो भव: में ही विश्वास करते हैं। लेकिन, इसकी पहली शर्त ही मर्यादा है, जिसमें रहते हुए विदेशियों को ही नहीं, हर उस व्यक्ति को सम्मान मिलेगा, जो हमारे प्रदेश में आया है।
9 comments:
"जहां हिंदू संस्कृति इस बात की इजाजत नहीं देती"
पता नहीं कौनसी हिंदू संस्कृति.. यहाँ तो मंदिरों में भी मैथुन के चित्र बने है.... धर्म के नाम पर दादागिरी और कानून हाथ में लेने की आदत.. और ऊपर से पधारो म्हारे देश?
आप का लेख बहोत अच्छा है! पर हम ये क्यू भूल जाते है जो हमारे लिए मर्यादाये है वो शायद उनके लिए ना हो!
आप अगर पर्यटन को बढ़ावा देना चाहते है और अपनी संसृति भी बचाना कहते है तो जहा (आस्था के उन घाटों पर या मंदिरोमै) उस तरह के नियम पक्के कर दिए जाये.... हमारे दक्षिणके कई मंदिरोमै ये नियम लागु है! और जहा तक विदेशियोका सवाल है वो लोग नियम हमसे बेहतेर मानते है!
nice apane bhut badhiya likha hae
आपका लेख और विचार ठीक है | मेहमानों को मेजबानों के यहाँ का रहन - सहन रीती - रिवाज और परम्पराओं का सम्मान करना ही चाहिए | यहाँ पर उन पर्यटकों की गलती को उनका गाईड प्रश्रय दे रहा था और समझाने पर नहीं माना जिसका इलाज होना ठीक ही था |
कुछ लोग मंदिरों की मूर्तियों में जो अश्लीलता देख रहे हैं और संस्कृति पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि वह एक कामुक राजा की जिद के कारण बने हैं | उनका हमारी संस्कृति से केवल इतना ही लेना देना है कि वह एक उत्कृष्ट मूर्तिशिल्प है और कुछ नहीं |
गंगा में नंगा उतरना तो गंगा के प्रति भी अपमान होता है |
This is a good blog.
कोई गंगाप्रेमी यह नही बर्दाश्त कर सकता की गंगा के करीब आ लोग इस तरह यहां की संस्कृति का अपमान करे गंगा के प्रति लोगो में आस्था है वह उनके लिए मां है वह इन विदेशियों के हाथो अपनी मां का अपमान नही करा सकते बहराल यहां के लोगो ने उन्हे यह अहसास करा दिया की गंगा नदी को वह अपनी मौज मस्ती की जगह न समझे।
Bahut hi badhiya lekh hai aapka ..
swagat hai.. Paryatan ke name par hum apni sanskriti se sauda nahi kar saktey ..
aur Mai ye RANJAN jee ke comment se bilkul sahamat nahi hu..
Inko adat hogi apni maa beti ke samney Nangey ghoomney ki. to bhai sahab apni aadat apney ghar tak hi rakhey .. aur itna pyar hai videsiyo se to wahi jakar bas jaiye
main aap se sahmat nahi hun ranjan ji. maaf kigega kaphi negative soch rakhte hain aap apne desh ke baren mai.
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