Tuesday 20 May, 2008

रामशरण हम शर्मिंदा हैं...

मंगलवार का दिन यूं तोः हर रोज की तरह शुरू हुआ ही था, की अचानक आँख चली गई हिन्दुस्तान टाइम्स की दर्दनाक ख़बर पर....ख़बर तोः आम ही थी क्यूंकि कलम घसीटने वालों को किसी के मरने से कोई ख़ास फर्क नही पड़ता..कहते हैं की येः तोः हमारा पेशा है की हमें यूँही भावहीन बने रहना है...संवेदना होने पर भटकने का खतरा है.....पता नही संवेदनहीन होने पर भटकने का खतरा है या संवेदनशील होने पर...येः तोः बड़े-बडे विद्वान् ही बता पायेंगे...पर ख़बर पढने के बाद संवेदनाओं पर काबू रख पाना बेहद मुश्किल लग रहा था अपने लिए...दुखद ख़बर येः थी मेरे लिए की दिल्ली के बी आर टी कारीडोर पर महज ३५०० की नौकरी करने वाले रामशरण को एक बस ने टक्कर मार दी..जिसमे रामशरण की मौत हो गई....जब ख़बर पढी तोः उस बेहद मामूली इंसान के प्रति श्रद्धा ही मन में उपजी....दरअसल रामशरण पहले एक दूकान चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते थे...दिल्ली में सीलिंग का कहर टूटा और गरीब रामशरण की खुश हाली का साधन उनकी दूकान बंद हो गई...अदम्य जिजीविषा और संघर्ष शील इस इंसान ने हार न मानते हुए अपने प्रयास जारी रखे और बी आर टी में मार्शल की नौकरी शुरू की....बेहद मदद गार और खुद्दार इस इंसान के लिए जिन्दगी ने शायद दुश्वारियाँ कम न करने की कसम खा ली थी और इस शानदार इंसान की जिंदगी के साथ इसके लिए सब कुछ ख़त्म कर दिया....अब उनके परिवार में हैं पत्नी और बच्चे...पत्नी की आंखों में है बड़ा सा शून्य....उनकी पीड़ा को बेहद दर्दनाक तरीके से बयान करता हुआ....हजारों सवाल....अब क्या होगा ...न तोः रामशरण किसी पार्टी के कार्यकर्ता थे और न हरकिशन सुरजीत की....मनमोहन से लेकर आडवाणी तक उनके परिवार को दिलासा देने जाएँ...येः अलग बात है की उनका योगदान कहीं से भी सुरजीत से कम रहा हो ऐसा कोई समझदार आदमी नही मान सकता...लोगों को बिना किसी फायदे के सड़क पार करना, उन्हे जानकारी देना और हर वक्त उनकी मदद के लिए तपती धुप में एक मुस्कराहट के साथ खडे रहना...इससे बड़ा योगदान इंसानियत की तराजू पर क्या हो सकता है? किसी पर फर्क पडे न पडे...मुझ पर और मुझ जैसे कई लोगों को दर्द हुआ, अपने तरीके से मदद भी करूँगा पर...जिस दिलेरी से रामशरण जिन्दगी के मोर्चे पर लड़ाइयां लड़ रहा था...अब कौन लड़ेगा....उनकी पत्नी को कोई सहारा नही देगा...क्यूंकि वे बेहद आम लोग हैं...दाल चावल खाकर सो जाने वाले...वो आदमी दिलेर था, जांबाज था...मन कहता है....आख़िर बेहद आसान था उसके लिए चोरी करना, गाडियाँ लूटना और जेब काट लेना....क्यूंकि भले बने रहना बेहद मुश्किल है..और अपनी लाख दुश्वारियों के उस इंसान ने भले बने रहना ही चुना....उम्मीद है उनके परिवार तक हमारी संवेदनाएं पहुंचे और ईश्वर उनके परिवार को एकजुट कर सके...अंत में उनके जज्बे को सलाम करते हुए ....अपनी असीम संवेदनाओं के साथ
हृदयेंद्र
(इस पूरे मामले में दुखद येः था की अपने आप को किसी से कम न मानने वाले हिन्दी अखबारों में से सबने लगभग हाशिये पर रामशरण की मौत को रखा...कहीं तोः येः ख़बर छापी ही नही और जहाँ छापी वहाँ बस खानापूर्ति कर दी गई....किसी ने उस इंसान के जज्बे को दुनिया के सामने लाने की कोशिस नही की...एक पत्रकार कहलाने के नाते फिर एक बार अपने पेशे पर शर्म आई...लेकिन पता नही येः शर्म कितनों को आई होगी...उम्मीद है हमें इस गलती के लिए रामशरण की आत्मा कभी माफ़ नही करेगी...)

3 comments:

मृत्युंजय कुमार said...

हम भी शिमॆंदा हैं। पत्रकािरता की इस संवेदनहीनता पर।

bambam bihari said...

रामशरण सेलेिब्रटी नहीं था। अगर होता तो उसे यह मौत नहीं िमलती। िमलती भी तो तुरंत उसके नाम पर ट्रस्ट बनाकर चंदा उगाही शुरू हो जाती। और मीिडया हफ्ते भर गरूड़ पुराण पढ़ता नजर आता।

राजीव उत्तराखंडी said...

हर कामगार के िलए सबक है रामशरण की मौत। िकसी का भी हश्र हो सकता है एेसा।