Monday 11 August, 2008

पर्यावरण की कीमत पर हेलीकाप्टर सेवा


-राजीव थपलियाल
पर्यावरण विध्वंस की कीमत पर विकास कभी भी उचित नहीं कहा जा सकता है। जब ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण का लेकर संपूर्ण विश्व में चिंता व्याप्त हो, ऐसे समय में हमें भी अपनी वन-संपदा, धरती और नदियों को बचाने की आवश्यकता है। भारत में जो थाे़डे बहुत वन हैं, उस विरले भूभाग में उत्तराखंड के वन क्षेत्र भी हंै। उत्तराखंड ने उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद विकास केतमाम नए आयाम हासिल किए हैं, लेकिन कई उपलब्धियां पर्यावरण विनाश की कीमत पर हासिल हंै। भागीरथी नदी पर मनेरी भाली और टिहरी बांध बनने के बाद जोश में आई उत्तराखंड सरकार ने अब अलकनंदा को बांधने का काम शुरू कर दिया है। जहां भी बांध बन रहे हैं, वहां हजारों एकड़ वन संपदा उनमें डूबो दी गई है। अब ऊंचे स्थलों पर स्थित तीर्थ स्थानों के लिए बढ़ रही हेलीकाप्टर सेवाआें ने चिंता में डाला है।
पुराणों में के दारखंड के नाम से उल्लेखित उत्तराखंड की भूमि के लिए कहा गया है कि यहां कंकर-क ंकर में शंकर विराजते हैं। जाहिर सी बात है कि यह सूबा तीर्थस्थलों की पवित्र भूमि है। इन धर्मस्थलों में धार्मिक दृष्टि और पर्यटन की द्वयमंशा वाले लोग बड़ी तादाद में आते रहते हैं। इन यात्रियों को सुविधा देना पुण्य का कार्य है। लेकिन, इन सुविधाआें के नाम पर स्थानीय पर्यावरण से छे़डछाड़ कतई समझदारी नहीं कही जा सकती। इस छे़डछाड़ का दुष्परिणाम गंगोत्री में स्पष्ट देखा जा सकता है। गंगा अपने उद ् गम स्थल गोमुख से कहीं दूर पहुंच गई है। गंगोत्री ग्लेशियर पर दरारें पड़ चुकी हैं। हालात को देखते हुए विशेषज्ञों ने गंगा के लुप्त होने तक की आशंका जता दी है। कारण, पर्यटकों की बढ़ती संख्या और उनकी लापरवाही से ग्लेशियरों के अस्तित्व पर संकट छा गया है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जबकि बर्फ उस मात्रा में नहीं गिर रही है।
इसी प्रकार पचास-साठ वर्ष पहले नर-नारायण पर्वत पर बद्रीनाथ मंदिर केआसपास गर्मियों में भी बर्फबारी हुआ करती थी, पर यात्रियों की बढ़ती संख्या, वाहनों की लगातार बढ़ती आवाजाही और क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण कार्यों के कारण बर्फबारी तो दूर, आसपास के ग्लेशियर तक खत्म गए हैं।
अब उत्तराखंड स्थित सिखों के पवित्र तीर्थ हेमकुंड साहिब की यात्रा के लिए हेलीकाप्टर सुविधा पर जोर शोर से काम हो रहा है। प्रस्ताव अच्छा है कुछ यात्रियों को इससे लाभ पहुंचेगा। पर सवाल यह है कि हेलीकाप्टर जिस मार्ग से गुजरेगा वहां का पारिस्थितिकीय संतुलन या अपने मूल स्वरूप में रह पाएगा। इसका ताजा उदाहरण श्री बाबा अमरनाथ हैं। अमरनाथ गुफा तक के लिए जब हेलीकाप्टर सेवा नहीं थी, तब गुफा में हिमलिंग लंबी अवधि तक विराजमान रहता था। कई सालों से प्रतिवर्ष यात्रा करने वाले बताते हैं कि आज से पांच-सात साल पूर्व तक भी हिमलिंग पंद्रह फीट ऊंचा और सात फीट चाै़डाई लिए होता था, जोकि यात्रा की समाप्ति रक्षाबंधन तक सुरक्षित रहता था। लेकिन, जबसे हेलीकाप्टर सेवा शुरू की गई है, हिमलिंग मात्र कुछ ही दिन में अंर्तध्यान होने लगा है। इसके पीछे विशेषज्ञों का कहना है कि हेलीकाप्टर के आने जाने से होने वाले कंपन से यह पर्यावरण पर कुप्रभाव पड़ा है। हेलीकाप्टर से निकलने वाली गर्मी, तेज हवा और धुआं गुफा के आसपास के वातावरण को खराब कर रहा है, जिस कारण गुफा के अंदर गर्मी का माहौल बनता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जब श्री हेमकंुड साहिब के लिए हेलीकाप्टर चलेगा तो वहां अपने मार्ग में पड़ने वाले साढ़े छह किलोमीटर लंबे वन भूमि वाले क्षेत्र के साथ ही हिमालयी पर्यावरण पर उसका कितना बड़ा दुष्प्रभाव डालेगा।
एक बात और जिस इलाके से हेलीकाप्टर गुजरेगा, वह स्थानीय लोगों के लिए प्रतिबंधित है। स्थानीय भे़डपालक गर्मियों में फूलों की घाटी सहित पूरे इलाके में भे़ड-बकरियां को चराया करते थे। भे़डें घास को खाती थीं बदले में उसके गोबर पौधों के लिए खाद के रूप में उपयोगी होती थी। साथ ही उनके खुरों से मिट् टी की गु़डाई प्राकृतिक रूप से हुआ करती थी। परिणामत: दुनिया के श्रेष्ठ फूलोंं की प्रजाति इस इलाके में विद्यमान हैं, लेकिन पर्यावरण संरक्षण के बहाने इलाके को नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व घोषित कर दिया गया। इसकेचलते क्षेत्र में स्थानीय भे़डपालकों के लिए प्रवेश निषेध कर दिया गया। यानी कि उन्हें उनके प्रकृति प्रदत्त हक हकूक से वंचित कर दिया गया। नतीजा सामने है कि फूलों की घाटी से फूलों की कई प्रजाजियां लुप्त हो चुकी हैं और कई लुप्त होने की कगार पर हैं। बिडंबना यह है कि सदियों से जिन लोगों की बदौलत पर्यावरण सुरक्षित रहा है आज उन्हीं को इसकी बर्बादी का आरोप मढ़ कर क्षेत्र से बेदखल कर दिया गया है। ऐसे में नीति निर्धारक यह कहने की स्थिति नहीं है कि गरीब जनता और धनीमानी लोगों के लिए दोहरा मापदंड यों।
कितनी मुश्किल से इलाके में वनभूमि विकसित हुई होगी। लेकिन श्रद्धालुआें के लिए बुनियादी ढांचा और सुविधाएं जुटाने के नाम पर जमीन को उजाड़ दिया जाएगा। यहां हेलीपैड, धर्मशालाएं ओर गेस्ट हाउस बनेंगे तो इस पूरी प्रक्रिया केदौरान पर्यावरण को कितनी क्षति पहुंचेगी। एक बात और हिमालय के इस भूभाग में दुर्लभ कस्तूरी मृग पाया जाता है। साथ ही हिमालयी दुर्लभ पशु-पक्षी यहां विराजते हैं। या हेलीकाप्टर के भयंकर शोर और कंपन से अपने मूल निवास में स्वच्छंदतापूर्वक रह सकेंगे, पहाड़ी चट्ट ानों की मजबूती बरकरार रह पाएगी। चापर केबार-बार च कर लगाने से पैदा गर्मी पहाड़ के शीतल वातावरण को डिस्टर्ब नहीं करेगी और इंर्धन जलने से निकलने वाला धुंआ आबोहवा को प्रदूषित नहीं करेगा।
इसका अंदाजा हम अभी नहीं लगा पा रहे लेेकिन आने वाले सालों में हमसे इसका हिसाब देते नहीं बन पड़ेगा। इससे पूर्व भगवान केदारनाथ के लिए हेलीकाप्टर सेवा शुरू की गई है, जिसे लेकर भी स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों में रोष है। वे इसे बंद करने की मांग लगातार करते आ रहे हैं। सरकार को आकलन करना चाहिए कि अब तक हेलीकाप्टर सेवा से जो राजस्व मिला है या वह इसके चलते बिगड़े पर्यावरण्की छति पूरी कर लेता है।
वैसे भी धार्मिक यात्राआें को पैदल पूरा करने की परंपरा रही है। धर्मस्थल तक यात्रा करने वालों का बमुश्किल एक प्रतिशत ही हेलीकाप्टर सेवा का लाभ लेगा, जिनमें उद्यमी वर्ग के अलावा काली कमाई करने वाले सरकारी अफसर और नेता ही शामिल होंगे। लाखों की संख्या में आम आदमी तो अपने सस्ते और परंपरागत साधनों का ही इस्तेमाल करेगा। ऐसे में सोचा जाना चाहिए कि महज हजार-ड़ेढ हजार यात्रियों की सुविधा के लिए बेशकीमती पर्यावरण से छे़डछाड़ की जानी चाहिए। इस संबंध में हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय के वन विज्ञानी प्रो. डीएन टोडरिया सुझाव देते हैं कि हेलीकाप्टर के स्थान पर रोपवे बनाया जाना चाहिए। इससे पर्यावरण को हेलीकाप्टर की अपेक्षा कहीं कम नुकसान पहुंचेगा, जबकि अधिक से अधिक यात्री तीर्थाटन का लाभ उठा पाएंगे।

( अमर उजाला से साभार : सम्पादकीय पेज आठ अगस्त 2007 )

3 comments:

Udan Tashtari said...

आभार इस आलेख को प्रस्तुत करने का.

Asha Joglekar said...

aapka kehana sahi hai.

RAJNI CHADHA said...

पर्यावरण विध्वंस पर विकास नहीं चाहिए हमें, सबको पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास करने होंगे। तभी जाकर हम अपनी प्राकृति को बचा सकते है। अब सिर्फ पहाड़ों में ही हरियाली बची है, उसे भी खत्म कर दिया गया तो हम खुद जानते है कि इसका अंजाम क्या होगा। विकास तो सब चाहते है, लेकिन इतनी बड़ी कीमत नहीं दे सकते उसके लिए।