Friday, 3 October 2008

कैसे खुश होगी 'बापू` की आत्मा

विनोद के मुसान
किसी को अपने घर-दफ्तर या कहीं और पहुंचने की इतनी जल्दी भी हो सकती है, यह देखकर बड़ी हैरानी हुई। मन में गुस्सा आया, सोचा यों इस व्यि से इसी की भाषा में बात की जाए। लेकिन, उसी पल गांधी जी का ध्यान आया और मैं मन मसोस कर रह गया। दूसरा, गांधी जयंती पर गांधीगीरी में भी बात कर सकता था, लेकिन उसका समय नहीं था। इसके बाद मैंने उस वृद्धा को सहारा देते हुए अमुक व्यि पर अफसोस जाहिर किया और आगे बढ़ गया। सोचा, ऐसा तो नहीं होना चाहिए था गांधी जी के सपनों का भारत। इस देश में जहां खचाखच भरी बस में बड़े-बू़ढों को देखकर नौजवान अपनी सीट छाे़ड देते हैं, भला ऐसा कोई कैसे कर सकता है।
दरअसल, साप्ताहिक अवकाश होने के चलते एक मित्र ने खाने पर आमंत्रित किया था। बस स्टैंड पर पहुंचकर मैं बस का इंतजार कर रहा था। तभी, विपरीत दिशा को जाने वाली एक लोकल बस आई और लोग उसमें भे़ड-बकरियों की तरह चढ़ने लगे। यहां तक तो ठीक था। लेकिन, अंत में जैसे ही एक वृद्धा बस में चढ़ने लगी, ठीक उसी पल बस भी चलने लगी। वृद्धा बस में चढ़ पाती, इससे पहले भागता हुआ एक युवक आया और वृद्धा को का देते हुए बस में चढ़ गया। वृद्धा जमीन पर पड़ी ठीक से संभल भी नहीं पाई थी कि बस चल पड़ी। मैं सारा मंजर देख रहा था। इसके बाद मेरे पास दो विकल्प थे। या तो मैं किसी तरह बस रुकवा कर उस युवक को सबक सिखाता या वृद्धा को संभालता। पल भर में मन में कई तरह के ख्याल आए, गुस्सा भी आया और हैरानी भी हुई। उस युवक की कम की लाचारी पर अफसोस करने के बाद अंतत: मैंने वृद्धा को उठाया और बगल की एक दुकान से पानी लाकर पिलाया। दुकान वाले को ही वृद्धा को सुरक्षित बस बैठाने का आश्वासन लेकर मैं आगे बढ़ गया।
दिन था, दो टूबर। यानी गांधी जी का जन्मदिवस। इस दिन को भारत ही नहीं वरन पुरी दुनिया में अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। ऐसे में उपरो मंजर की कल्पना कीजिए और फिर कहिए, 'मेरा भारत महान` यकीनन, अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो जरूर आपका सिर शर्म से झुक गया होगा। गांधी जैसे महान व्यि तत्व के आदर्श तो बहुत ऊंचे थे, ये तो छोटी सी बात है। बड़े-बू़ढों का सम्मान करो, सड़क पर कू़डा मत फेंकों, पंि में आकार व्यवस्था बनाए रखने में साथ दो आदि तमाम ऐसी व्यवहारिक बातें शायद कुछ लोगों ने सीखी ही नहीं हैं। और कुछ लोग जिन्हें इनका ज्ञान है, वे इन बातों को अपने व्यवहार में ही नहीं लाते। मन में ग्लानि सी होती है, जब कोई अंग्रेज हमारी दरिद्रता, भूख, गरीबी और अल्प व्यवहारिक ज्ञान को कैमरे में कैद कर अपने देश ले जाता है। इस देश में अपार सुंदरता भी है, लेकिन हम उसे प्रस्तुत नहीं कर पाते। इस देश में ज्ञान भी और सम्मान भी, लेकिन हम उसे बांट नहीं पाते। हम लड़ते हैं, झगड़ते हैं और कुछ स्वार्थी लोगों को कहते हैं, आओ देखो हमारा घर जल रहा है, चाहो तो आकर अपनी रोटियां सेंक लो। बापू के सपनों का भारत, शायद ऐसा नहीं रहा होगा।
अंत में
अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है, सुधरने की कसम खाने के लिए किसी खास दिन की दरकार नहीं होनी चाहिए। बापू का जन्मदिवस इस साल की तरह हर साल आएगा। लेकिन, कोशिश यही होनी चाहिए अगली बार जब बापू की आत्मा ऊपर से देखे तो उसे वृद्धा को सहारा देकर बस में चढ़ता कोई युवक दिखाई दे। यकीन मानिए बापू की आत्मा जरूर खुश होगी।

1 comment:

Bhupender bhatia said...

Moosaan ji, no one care Bapuji now days.