Thursday 19 June, 2008

आस्था से खिलवाड़

बाबा बर्फानी की एक झलक पाने के लिए महीनों की कड़ी मशक्कत के बाद पहलगाम पहुंचे श्रद्धालुआें को दर्शन से पहले बुधवार को लाठियां खानी पड़ी। कई श्रद्धालु चोटिल हुए, जबकि इस दौरान मची भगदड़ में कई बेहोश हो गए। महिलाआें, बच्चों और बुजुर्ग श्रद्धालुआें को खास तौर पर काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इस बदइंजामी के लिए श्राइन बोर्ड और जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रशासन को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। आतंकियों की धमकी को नजरअंदाज कर और मौसम की चुनौतियों से जूझने के जज्बे के साथ जान जोखिम में डालकर देश के कोने-कोने से पहुंचे श्रद्धालुआें को कम से कम इतनी उम्मीद तो रही ही होगी कि सरकार और यात्रा के प्रबंध में जुटी संस्थाएं उनकी मुश्किलें कम करेंगी। लेकिन हुआ ठीक उसके उलट। यह आस्था से खिलवाड़ नहीं तो और या है?
इस सालाना धार्मिक आयोजन के लिए सालभर उच्चस्तरीय बैठकों का दौर चलता है, देश और प्रदेश की सरकारें तमाम प्रबंधों की समीक्षा करती हैं और विभिन्न इंतजामों के नाम पर बड़ी राशि खर्च भी की जाती है। इसके बावजूद सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर से तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए पहलगाम पहुंचे श्रद्धालुआें को बदइंतजामी का सामना करना पड़ा है, यह अत्यंत निंदनीय है। पहले ही दिन रिकार्ड करीब २५ हजार श्रद्धालुआें ने पवित्र गुफा में बाबा के दर्शन किए। एक दिन में अधिकतम १० हजार श्रद्धालुआें की पाबंदी के बावजूद इतनी बड़ी संख्या में भ तों के दर्शन करने से श्राइन बोर्ड की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा है। या श्राइन बोर्ड के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर सरकार भी तत्काल जरूरी कदम उठाएगी, ताकि ऐसी घटनाआें की पुनरावृत्ति न हो?

1 comment:

Prabhakar Pandey said...

एकदम सटीक और सामयिक मुद्दा। "आस्था से खिलवाड़" शायद परंपरा बनता जा रहा है।