Wednesday 18 June, 2008

ई-मेल जी की जय हो

ई-मेल जी की जय हो
-थपलियाल राजीव
ई-मेल जी आपकी जय हो। आप न होते तो हम इ कीसवीं सदी में होते हुए भी न होते। आपके पदार्पण से बहुत कुछ बदल गया है। आपने आते ही कबूतर जा-जा के जमाने को लात जमाकर हमें चकाचक इंटरनेटी युग को पटक दिया। पहले प्यार मोहब्बत करने वाले झाड़ियों को तलाशा करते थे कि उसकी छांव तले एक-दूसरे को निहार सकंे। उनकी धड़कने शताब्दी की माफिक भागा करती थी कि कहीं कोई कटखना मानवजात उन्हें देख न ले। प्यार की शीतलता में भय की गर्मी। यानी परिणाम मौत।
लेकिन, आपने प्रेमी-प्रेमिकाआें को मौत के भय से दूर कर दिया है। वे अपने-अपने घर बैठे ही आपको 'अंगुलिकाआें` की छुअन मात्र से एक-दूसरे के दीदार पलक झपकते कर सकते हैं। फिर वे चाहें जितनी बतियां चाटा करें, दीवारों के कानों को फुस्फुसाहट तक पल्ले नहीं पड़ने वाली।
आपने शांति स्थापना में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया है। सतयुग था तो सिंहासन की लड़ाई में इंद्र को हर व त वज्र लेकर पंगा करने को तैयार रहना पड़ता था। संचार के साधन के रूप में नारद महाराज को खबरें लेकर हर पल स्वर्ग से मृत्युलोक और मृत्युलोक से बैकुंठ का च कर लगाने होते थे। भागते-भागते दम फूल जाता था और सांसे उखड़ने लगती थी पर बॉस का आर्डर था कि पांव रुकनेे नहीं चाहिए। बेचारे!
त्रेतायुग आया तो उसमें भी जमीन-सिंहासन को लेकर भिड़ंत होने का क्रम जारी रहा। इस युग में अग्निवाण-ब्रह्मास्त्र के जरिए मामले सुलटाए गए। मैसेज के लिए वानरों का सहयोग लिया गया। लेकिन, इस झमेले में संदेशकर्ता को डर अलग रहता था कि कहीं कपि महाराज ने किसी आश्रम के बगीचे में ठंू-ठां कर दी दी तो ऋषि-मुनि का श्राप झेलना होगा।
द्वापर युग में आकाशवाणियों ने काम चलाया। इसमें भी पंगा कि गलत मौके पर बोल गई तो दुल्हा-दुल्हन जा पहंुचे कैद में।
लेकिन, कलियुग में आपने इस सब झंझटों से मुि त दिलवा दी। अब खून-खच्चर के बजाय शुद्ध अहिंसावादी तरीका अपनाया जाने लगा है। कभी सुई की नोक के बराबर जमीन के लिए महाभारत हो गया था, लेकिन आज आपकी बदौलत दौलत के लिए कहीं भी भाइयों में अस्त्र-शस्त्र नहीं उठ रहे हैं। शब्द वाणों से काम चलाया जा रहा है और दोनों पक्ष एक-दूसरे को परास्त करने के लिए कंप्यूटरवा के मार्फत ई-मेल भेज रहे हैं। एक पक्ष ई-मेल से हमला करता है तो दूसरा भी जवाबी ई-मेल करता है। इस आघात में न कहीं र त बहता है और न कहीं सिर कटता है। मगर, हमले का उ ेश्य पूरा हो जाता है सामने वाला पक्ष बिलबिलाते हुए शीश झुका लेता है। अगर, उसकेपास फालतू का टाइम हो और जंग को लंबा चलाना चाहे तो भी नो प्राबलम। उसके तरकश के बाण खत्म नहीं होंगे।
इस प्रकार हे ई-मेल! प्रेम और शांति केे क्षेत्र में दिए योगदान के लिए हम आपके समक्ष नतमस्तक हैं। सची-मुची में दिल से समर्पित प्रेमिका की भांंति आपकी मंगलकामना करते हुए जय-जैकार करते हैं।

1 comment:

RAJNI CHADHA said...

email ki jai ke sath computer baba ki jai bi boleye janab. jis ne ghar bathe hi sab assan ker diya.