Tuesday, 4 November 2008

देह दर्शन या ड्रग्स को बढ़ावा




मधुर भंडारकर की फिल्म ‍'फैशन' में भारतीय फिल्म की नायिकाओं ने सभी पराकाष्ठा पार कर दी है । देह दर्शन के अलावा धूम्रपान 'फैशन' का सबसे बड़ा नकारात्मक हिस्सा है । फिल्म की नायिका कंगना राणावत और प्रिंयका चोपड़ा जिस तरह खुलेआम सिगरेट के धुंए के छल्ले उडाती नजर आईं, तो उससे भी कहीं ज्यादा बोल्ड शराब पीने की सीन रही है । अधनंगे बदन के साथ सिगरेट और शराब की मस्ती वाली 'फैशन' समाज को क्या संदेश देना चाह रही है, यह फिल्म देखने वाले भी नहीं बता सके । 'डा‍न' फिल्म में हीरो शाहरुख खान ने सिगरेट के धुंए उड़ाने पर जब बवाल खड़ा हो सकता है, तो फैशन की दारू और सिगरेट सैंसर बोर्ड को क्यों नजर नहीं आए । फैशन में तो हद ही कर दी है, मिनट दर मिनट सिगरेट के कश हीरो और हीरोइन लगा रहे हैं, लेकिन किसी को परवाह नहीं है । फिल्म में कंगना राणावत को ड्रग्स लेते जैसे दिखाया है, क्या यह उचित है ? कंगना राणावत ही क्यों प्रिंयका चोपड़ा भी क्लब में ड्रग्स लेती हैं, उसके बाद अपना सबकुछ लुटा देती हैं (हालांकि चोपड़ा इससे पहले ही अपना सबकुछ लुटा चुका होती है)। फैशन में मुंबई की क्लबों को जिस तरह से दिखाया गया है, सही हो सकता है, लेकिन फिल्म में सिगरेट, शराब, स्मैक, नशीले इंजैक्शन लेते होरी और हीरोइन ने सभी मर्यादा लांघ कर लोगों को गलत संदेश दिया है ।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्वजिनक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी लगाने के बाद उम्मीद जगी थी कि लोग सुधर जाएंगे, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो सका । जब सिगरेट, शराब और अन्य तरह के नशीले ड्रग्स पर रोक है तो फैशन में इतनी मस्ती क्यों ? सैंसर बोर्ड सो कर फिल्में पास क्यों कर देता है । यही नहीं धूम्रपान पदार्थों के विज्ञापन पर भी रोक है, लेकिन फैशन में धूम्रपान पर रोक क्यों नहीं है ?

7 comments:

Amitraghat said...

मधुर भंडारकर को लगता है की वे कुछ भी बनाय सब कुछ ठीक बन पड़ेगा कारपोरेट लेले या सत्ता सब फिल्मों में उन्होंने नारी को उपभोग की वस्तु बना के रखा है फैशन भी उसी तरह की फ़िल्म है आपने सही कहा है किसी भी फ़िल्म में हीरो हीरोइन ने इतने नकारात्मक काम नहीं किए हैं जितने इस फ़िल्म में हुए हैं पता नहीं भंडारकर साब इस फैशन से क्या कहना चाहते हैं

ye to bada toing hai said...

बंधु मेरे
कुएं के मे़ढक का नाम सुना है। उसे सारा जहां उसी में नजर आता है। लगता है आपकी भी वही हालत है। कभी भगवा धारियों पर हमले बोल रहे हो तो कभी महिलाआें की स्वच्छदंता पर। आखिर आप चाहते कया हैं। यदि आप ऐसी सोच रखते हैं तो दूसरे भी अपनी किस्म सोच रखने के हकदार हैं कि नहीं। लगता है आप अपने शहर... सारी! गांव के बंदे लगते हो। कभी मुंबई आकर देखो बच्चे! तो पता लग जाएगा कि जिंदगी किसे कहते हैं। आप दारू पीकर हु़डदंग मचाओ तो 'मौज` और लड़कियां करें तो 'महापाप`। आप लड़की को आंख मारते रहो तो 'रसिया` और वे बिचारी थाे़डा नजरें भी उठा लें तो 'कुलक्षिणी`।
सावधान! नारी जाग गई है। आपको उसका जागना बुरा लग रहा है। नहीं, आप को बुरा नहीं लग रहा है बल्कि जलन हो रही है कि आप कयों नहीं इन लड़कियों तक पहुंच रहे हो। खामखां संस्कृति का ढिंढोरा पीटना बंद करो। आप वही हो सोमनाथ का मंदिर लुट रहा था और आप घर में दुबककर भगवान को पुकार रहे थे। इसलिए फालतू का रोना बंद करो और जमाने के साथ चलना सीखो। नहीं भी चलोगे तो हम फिल्म-विज्ञापन की दुनिया वालों की दुनिया पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। कयोंकि हमारा माल बिकता है सो हम मस्ती करते हैं आप बस कोसते रहो दूसरों को। मेरा लिखना आपको बुरा लगेगा पर, बी पाजिटिव सोचो और ख्ुाद की सोच बदलो।

सुप्रतिम बनर्जी said...

महावीर भाई को एक अच्छे पोस्ट की शुभकामनाएं देने के इरादे से कमेंट्स क्लिक कर रहा था। लेकिन जब दूसरा कमेंट देखा, तो मुझसे नहीं रहा गया। सोचा, पहले 'टॉइंग साहब' को ही जवाब दिए देते हैं। तो प्रगतिशीलता का ढोल पीटनेवाले 'जनाब टॉंइंग', आपके प्रोफ़ाइल के नाम से ही पता चल जाता है कि आपके सोचने और समझने का स्तर क्या है? जिस विज्ञापन को कोई भी संजीदा शख्स पसंद नहीं कर सकता, (शायद अपने बड़े-बूढ़ों या बच्चों के साथ देखते हुए आप भी नहीं), आपने जब उसी विज्ञापन के विवादस्पद लाइन को अपना प्रोफ़ाइल नेम बना रखा है, तो फिर आपके बारे में आसानी से सोचा जा सकता है।
रही बात प्रगतिशीलता और नारी मुक्ति की, तो शायद आपकी नज़र में नारी मुक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ मर्दों से बराबरी करने में ही है। फिर चाहे वो बराबरी प्रकृति के विरुद्ध या बुराई की दिशा में ही क्यों ना हो? वैसे आपने खुद ही अपनी टिप्पणी में कहा है कि आपकी टिप्पणी लेखक को बुरी लगेगी, यानि आपको भी इस बात खूब इल्म है कि आप ग़लत बात कह रहे हैं। और माफ़ कीजिएगा ये गलत बात, कड़वा सच कतई नहीं है। लिहाज़ा, अगली बार किसी ऊटपटांग टिप्पणी से पहले अपने गिरेबान में ज़रूर झांक लें।

सुप्रतिम बनर्जी said...

महावीर भाई को एक अच्छे पोस्ट की शुभकामनाएं देने के इरादे से कमेंट्स क्लिक कर रहा था। लेकिन जब दूसरा कमेंट देखा, तो मुझसे नहीं रहा गया। सोचा, पहले 'टॉइंग साहब' को ही जवाब दिए देते हैं। तो प्रगतिशीलता का ढोल पीटनेवाले 'जनाब टॉंइंग', आपके प्रोफ़ाइल के नाम से ही पता चल जाता है कि आपके सोचने और समझने का स्तर क्या है? जिस विज्ञापन को कोई भी संजीदा शख्स पसंद नहीं कर सकता, (शायद अपने बड़े-बूढ़ों या बच्चों के साथ देखते हुए आप भी नहीं), आपने जब उसी विज्ञापन के विवादस्पद लाइन को अपना प्रोफ़ाइल नेम बना रखा है, तो फिर आपके बारे में आसानी से सोचा जा सकता है।
रही बात प्रगतिशीलता और नारी मुक्ति की, तो शायद आपकी नज़र में नारी मुक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ मर्दों से बराबरी करने में ही है। फिर चाहे वो बराबरी प्रकृति के विरुद्ध या बुराई की दिशा में ही क्यों ना हो? वैसे आपने खुद ही अपनी टिप्पणी में कहा है कि आपकी टिप्पणी लेखक को बुरी लगेगी, यानि आपको भी इस बात खूब इल्म है कि आप ग़लत बात कह रहे हैं। और माफ़ कीजिएगा ये गलत बात, कड़वा सच कतई नहीं है। लिहाज़ा, अगली बार किसी ऊटपटांग टिप्पणी से पहले अपने गिरेबान में ज़रूर झांक लें।

Anonymous said...

टोइंग महाराज आप वाकई टोइंग ही हैं ।
कुएं के मेंढक का नाम सुना है, आगे की स्टोरी मैं बताता हूं तुम्हें । शायद तुम मुंबई में रहते हो और दारू और नंगे बदन को जायज बताते हो । या तो तुम अभी बच्चे हो, या फिर तुमको कोई भयानक बीमारी है । जिसे हम सनकी भी कह सकते हैं । टोईंग से सनकी हो चुके बच्चे मैं तुम्हें कुएं और मेंढक की स्टोरी सुनाता हूं । एक कुएं में बहुत से मेंढक रहते थे, एक बूढ़ा सांप भी कहीं से कुएं में टपक पड़ा । सांप को भूख लगी थी, सांप में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मेंढ़क को पकड़ कर खा सके । उसको तरकीब सूझी क्यों ने सभी मेंढ़क को सैर करवाई जाए । सबसे बुजुगॆ मेंढक से मीटिंग कर मामला फिक्स हो गया । सैर के बदले एक मेंढ़क सांप को खाने के लिए दिया जाएगा । कुछ दिनों तक सब ठीक चला । अंत में बूढ़े मेंढ़क औऱ उसके बच्चे बचे । सांप ने उन्हें भी एक-एक कर खा चबा गया । इस स्टोरी में सनकी महराज में अक्ल लगाने की जरूरत नहीं है । तुम जैसे सनकी सांप यही करते हैं । होशियार रहने की तो हमको जरूरत है । सनकी सांप मैंने गांव भी देखा है वहां के ददॆ को भी महसूस किया है, और मुंबई में भी कई रातें औऱ दिन गुजारी हैं । सनकी जी मैं देश की राजधानी दिल्ली में कुछ साल गुजारे हैं, पंजाब में कुछ साल से पंजाबियत सीख रहा हूं । सनकी जी अगर कुछ सीखना है तो इंसानियत सीखो ।
सावधान! नारी जाग गई है।
सनकी जी तुम्हें लगता है कि देह दशॆन और दारू पीकर, कोकीन सूंघ कर नारी जागी है, तो तुम बड़े वो हो ... समझदार हो तो समझ लो । रही बात भगवाधारी पर हर इंसान के मन में पाप है, हर इंसान के मन में द्वेष है, हर इंसान में रावण हैं । तुम किस कटैगरी के बंदे हो यह तुम्हें पता होगा । मुल्ला मौलवी ही आंतकी हो तो ठीक है, भगवा पर उंगली उठे तो हायतौबा मचा दो । वाकई तुन वो ही हो ......
सामने वाले घर की बेटी, बहु और लड़िकयों पर नजर रखते हो और अपने घर को सुरिॐत ।
सुन सनकी अगर तुम्हारी कोई बच्ची होगी तो तुम कल्पना करना क्या यह सही है, दिल पर हाथ रख कर सोचना । मन की नहीं दिमाग से सोचना और हो सके तो बी पाजीटिव सोचना ।
और हां कुछ ज्यादा लिख दिया होगा, सो सारी यार, मैं तो हूं ही ऐसा । फटे में टांग अड़ाने की आदत है ..
लेकिन इस बार टांग आप ने अड़ाई है ... तो सनक दूर कर दिल की बात सुनो...और खूब सारे कंमेट लिखो ।

Unknown said...

सुप्रितम भाई साहब को मेरा प्रणाम,
भाई साहब हौसला बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
रही बात तो सनकी टोइंग की, तो अपने रास्ते में एसे कई टोइंग आते हैं । जिसे हम रास्ते में पड़े रोडे की तरह लात मार कर दूर फेंक देते हैं ।

ravish ranjan shukla said...

सुप्रतिम भाई ने जिस तरह से कमेंट किया है..वो उनकी अदा है.....जब दिल्ली के कई नामी कालेजों की लड़कियां सिगरेट के धुंए साॆवजनिक जगहों पर उड़ा सकती है तो फिल्मों में न पीने से आखिर क्या होगा....फिल्में भी तो कहीं न कहीं समाज का आईना है..और दॆपण कभी झूठ नहीं बोलता है....जब समाज के लभ्य प्रतिष्ठित लोग फैशन शो की अगली कतार में बैठकर बदन उघाड़ू चीजें देख सकते हैं तो आखिर फिल्म वालों से आप जय संतोषीमाता जैसी फिल्में बनाने की उम्मीद क्यों करते हैं....क्या आप और हमारे जैसे लोग कभी फैशन शो में जाकर यही भाषण देते हैं जो ब्लॉग पर आपने दिया है....बड़ी बड़ी बातें लिखना और बड़े लोगों को भाषण देने में अंतर है...जो दिखता है वहीं दिखा रहे हैं.. माना फिल्मों में परहेज किया जाना चाहिए लेकिन इस परहेज को आप कहां तक ले जाएंगे..फिर तो आपको टीवी भी बंद करनी होगी..पड़ोस के बड़े साहब की बड़ी लड़की को भी नैतिकता की घुट्टी पिलानी पड़ेगी...और सास बहू और साजिश को भी रोकना होगा जिसमें औरतों को मंथरा बनाया गया है....