Thursday, 6 November 2008

वह घर कितना भाग्यशाली होता है, जहां बेटी जन्म लेती है। वह मां-बाप भी कितने खुशनसीब होते हैं, जिनकी गोद में प्यारी सी बिटिया होती है। लड़की की खिलखिलाहट, उसका हर काम पूरे घर में उल्लासपूर्ण माहौल बनाए रखता है। बेटी वह देवी है, जो हर समय घर को रोशन बनाए रखती है। इसके बनिस्बत जिस घर में चाहे चार बेटे हों, लेकिन एक कन्या नहीं हो तो, वहां का माहौल कितना उदासीन होता है। घर में वह रौनक दिखाई ही नहीं देती, जो बेटी के होने से होती है। घर में एक अलग तरह की नीरसता सी छाई रहती है। आंगन सूना-सूना रहता है।
जब बेटी बड़ी हो जाती है, तो उस पर कई जिम्मेदारियां भी आ जाती हैं। वह मां के काम में हाथ भी बंटाती है। स्कूल से जब कालेज जाने लगती है तो साथ-साथ जवानी की सीढ़ियां भी चढ़ने लगती है। यह समय बिटिया के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। उसे घर से बाहर इधर-उधर के तानों से बचना होता है। घर की इज्जत भी बचाकर रखनी होती है। घर में बेटी, बहन का रोल अदा करती है। तो ससुराल में जाने के बाद पत्नी, बहूरानी और भाभी का रोल निभाना पड़ता है। लेकिन परमात्मा ने कन्या को ऐसा वरदान दिया है कि इस तरह के अनगिनत गंभीर हालातों का सामना करने के बावजूद वह हर समय खुश नजर आती है।
आज जमाना भी बदल गया है। बेटियां बेटों की कमी पूरा कर रही हैं। कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष की दूरी माप रही हैं, तो साइना नेहवाल जैसी बेटियां खेलों में झंडे गाड़ रही रही हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि इसके बावजूद बेटियों को इस धरा पर आने से रोका जा रहा है। यदि वह किसी तरह जन्म ले लेती है, तो झाड़ियों और कू़ड-कर्कट में फेंक दिया जाता है। अस्पतालों के बाहर सरकार और समाजसेवी संस्थाआें द्वारा पालने लगाए जा रहे हैं ताकि जो मां-बाप बेटियों का पालन-पोषण नहीं कर सकते, वह उन्हें इनमें रख जाएं। इंसानियत के लिए इससे शर्मनाक शायद और कुछ नहीं हो सकती। सबसे ज्यादा शर्मनाक बात तो यह है कि ज्यादातर मामलों में महिला ही महिला की दुश्मन नजर आती है। घर में बेटी के जन्म लेने पर सास अपनी बहू को ताने देने लगती है। गर्भवती महिलाएं पति पर अल्ट्रासाउंड का दबाव डालती हैं और कन्या होने पर खुद ही गर्भपात का प्रस्ताव करती हैं। साधु महात्मा कहते हैं कि जितना पाप एक हजार गायों को मारने से होता है, उससे भी ज्यादा पाप एक कन्या या कन्या भ्रूण की हत्या से होता है।
बेटियों की मुस्कान बचाए रखने के लिए भ्रूण हत्या के खिलाफ के खिलाफ आम आदमी को खड़ा होना होगा। धर्म गुरुआें और डा टरों के सहयोग से इस लक्ष्य को पाने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है।

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