Tuesday 1 January, 2008

यह भी अपने समय का सच है!

पहली खबर :
पत्रकार प्रशांत को उत्तराखंड की पुलिस ने गिरफ्तार किया है। उत्तराखंड की पुलिस यह बता रही है कि प्रशांत भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माओवादी के जोनल कमांडर है। यह हो सकता है कि पुलिस को कह रही है, वह सच हो। हो सकता है कि पुलिस का यह अारोप बिल्कुल गलत हो। मगर, उत्तराखंड के पत्रकारों को क्या हो गया है, जिन्होंने प्रशांत की गिरफ्तारी की खबर तो छापी, मगर यह नहीं बताया कि वे पत्रकार हैं। उनकी गिरफ्तारी की खबर छापने वाले बहुत सारे वे लोग भी शामिल है, जो प्रशांत को व्यक्तिगत तौर पर जानते हैं। फिर भी वहां के अखबारों में यह सच सामने नहीं अाता है कि प्रशांत कोलकाता से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक स्टैट्समैन के पत्रकार हैं। एक अखबार ने लिखा कि प्रशांत सीएलअाई नामक किसी संगठन के जोनल कमांडर हैं। उस अखबार के पत्रकार को सीएलअाई के बारे में कोई जानकारी तो नहीं ही है, सबसे ताजुब्ब की बात यह है कि अखबार के संपादक ने भी यह पता करने की जहमत भी नहीं उठाई कि सीएलअाई क्या बला है और उसमें प्रशांत जोनल कमांडर क्यों थे।
दूसरी खबर :
देवेंद्र शर्मा पहले पत्रकार रहे हैं और अब एनजीओ चलाते हैं और अखबारों में खेती से संबंधित सवाल पर कालम लिखते हैं। कुछ दिन पहले वे मंगलौर में बनने वाले सेज (विशेष अार्थिक जोन) के विरोध में वहां के किसानों को संगठित करने पहुंचे, वहां सेज के पक्षधर संस्थाओं ने उन्हें नक्सली बताते हुए भाडे़ के लोगों से परचे बंटवाए। जगह-जगह यह बैनर टंगवाए कि देवेंद्र शर्मा नक्सली हैं। इनका साथ देने वाले किसानों को भारी नुकसान हो सकता है। वहां के अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी भी है।

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