Tuesday 8 January, 2008

आख़िर कौन है नस्लवादी ?

भारतीय क्रिकेट टीम का आस्ट्रेलिया दौरा विवादों में घिर गया हैपहले तो अंपायरों ने पक्षपात का इतिहास रचाफिर एकतरफा फैसला कर भारतीय खिलाड़ियों को नस्लवादी घोषित किया गयाआखिर हम यों करते हैं गोरों से न्याय की उम्मीदयह इतिहास रहा है कि एशियाई टीमों के साथ उनका रवैया हमेशा से निंदाजनक रहा हैइनकी किसी भी सफलता को वे अहसान की तरह ही स्वीकार करते हैंहर जीत को संदेह की निगाह से देखते हैं और उसे तु का मानते हैंफिर हम योंं चाहते हैं उनसे अपने आचरण का सर्टिफिकेट? या आस्ट्रेलियाई टीम का यह रवैया नया है?
जाहिर है कि नहीं, पहले भी उसके खिलाड़ी प्रतिद्वंदी टीम को चोट पहुंचाने वाली टिप्पणियां करते रहे हैं। बल्कि इसे वे अपना सश त हथियार मानते हैं। क्रिकेट की भाषा में जिसे ..स्लेजिंग.. कहा जाता है दरअसल उस छींटाकशी को आस्ट्रेलिया के खिलाड़ियों ने अपमानजनक रूप दे दिया था। कई जीतों का श्रेय गर्व से वे अपने इस व्यवहार को देते रहे हैं।
लगातार मिल रही जीत ने उनके उल्लास को कब गर्व में और गर्व को दर्प मेंं बदल दिया यह आस्ट्रेलियाई कैप्टनों के क्रमश: बयानों में साफ देखा जा सकता है। जीत की लिप्सा अब कुंठा बन चुकी है। इसलिए हार की आशंका उन्हें बौखला देती है। दरअसल आस्ट्रेलियाई जीत और हार दोनों को ठीक ढंग से पचा नहीं पा रहे। एक मैच के समापन समारोह के दौरान पोंटिंग ने बीसीसीआई के अध्यक्ष शरद पवार को मंच से ध का देकर हटा दिया था। अभी भारत दौरे पर जब श्रीसंत ने उन्हीं की स्टाईल में उन्हें जवाब दिया तो उन्हें बुरी तरह अखर गया और आस्ट्रेलिया दौरे पर बदला लेने का मन बना लिया था।
पहले अंपायर, फिर मैच रेफरी और उसके बाद आईसीसी का पक्षपात पूर्ण रवैये ने भारतीयों को आंदोलित कर दिया। आम तौर पर अंपायर अपनी तरफ से निष्पक्षता बरतते हैं। लेकिन सिडनी जो कुछ हुआ उससे उन पर उंगली उठनी ही थी, उठी। शायद वे आस्ट्रेलियाई टीम के हौव्वे के दबाव में आ गए। लेकिन इसके बाद मैच रेफरी ने जिस तरह से एकतरफा फैसला कर भज्जी को नस्लवादी ठहरा दिया और आईसीसी का रवैया भी उसकेसमर्थन में रहा। इससे साफ हो गया कि क्रिकेट में नस्लवाद है और गोरे देश इसके पोषक हैं। वे आज भी आसानी से इसे स्वीकार नहीं करते कि क्रिकेट में भारत की भी थोड़ी बहुत ताकत है। हालांकि यह ताकत भारत के विकास और दूसरे पहलुआें का प्रतिनिधि नहीं है।
भारत क्रिकेट दुनिया का सबसे बड़ा बाजार है और यही उसकी ताकत है। इसी ताकत के बूत जगमोहन डालमिया आईसीसी को अपने इशारे पर चलाया करते थे। इसी ताकत ने बीसीसीआई को आईसीसी के फैसले को चुनौती देने का माद्दा दिया है। इसलिए जरूरी है कि मामले को बीच में न छोड़ा जाए और भारत सिडनी टेस्ट रद करने के फैसले पर अड़ा रहे और दौरा छोड़कर वापस चला आए। बेशक इसके लिए आस्ट्रेलिया से क्रिकेट संबंधों को तिलांजलि देने की नौबत आ जाए। यही क्रिकेट के नस्लवाद को भारतीय जवाब हो सकता है।

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