Sunday 13 January, 2008

हिन्दी अखबारों में बिजनेस का उजाला


राजेश रपरिया बिजनेस पत्रकारिता के लिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैंहिन्दी के पहले समग्र बिजनेस दैनिक अमर उजाला कारोबार उनकी असाधारण क्षमताओं का ही उदाहरण थाआज जब हिन्दी बिजनेस अख़बार के लिए बाजार में होड़ मची है तब उस पर उनकी टिप्पणी का खास महत्व हैपेश है दैनिक हिंदुस्तान में १३ January को छपा उनका आलेख-


हिन्दी पत्रकारिता और खासकर बिजनेस पत्रकारिता के लिए वर्ष 2008 तमाम खुशखबरों को लाया है। हिन्दी दैनिक अखबारों के बिजनेस पेज महज पीआर और टेंडर तक सिमट कर रह गए, तब यह अंदेशा स्वाभाविक है कि हिन्दी बिजनेस पत्रकारिता का आदि और अंत यही है। लेकिन हिन्दी बिजनेस चैनल ‘सीएनबीसी-आवाज’ की रिकॉर्ड सफलता ने अखबार मालिकों को भाषाई दैनिक बिजनेस अखबार निकालने के लिए आंदोलित कर दिया। नतीजा है कि इस साल एक-दो नहीं, तीन-तीन दैनिक हिन्दी बिजनेस अखबार लांच होने जा रहे हैं। भीमकाय ‘इकनॉमिक टाइम्स’, ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ और हिन्दी के सबसे बड़े अखबार ‘दैनिक जागरण’ के हिन्दी बिजनेस अखबारों का घमासान दिलचस्प होगा। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या हिन्दी में एक साथ तीन-तीन अखबार मुनाफा कमाने लायक हालत में पहुंच पाएंगे। जहां तक ‘इकनॉमिक टाइम्स’ और ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ के हिन्दी बिजनेस अखबारों का सवाल है, तो यह मूलत: मूल अखबार की सामग्री पर लगभग शत-प्रतिशत निर्भर होंगे। यानी लगभग अनूदित अखबार होंगे।

‘जागरण टीवी-18’ के गठजोड़ का अखबार कैसा होगा, इसके बारे में कुछ कहना मुश्किल है। इस संदर्भ में हिन्दी के पहले बिजनेस बहुसंस्करणीय सेटलाइट दैनिक अखबार ‘अमर उजाला कारोबार’ के अल्पकाल में ही बंद हो जाने के बाद अखबार मालिकों को ऐसा लगता था कि हिन्दी में बिजनेस अखबार की न कोई जगह है, न कभी थी। शायद यही कारण रहा कि अखबारी दुनिया में बेमिसाल सफलता हासिल करने वाले भास्कर समूह ने ऐन वक्त पर बिजनेस अखबार ‘डीएनए मनी’ को हिन्दी में प्रकाशित करने की बजाए अंग्रेजी में ही निकालना मुनासिब समझा। पर तब भी यह भय बेबुनियाद था, और आज भी है। ‘अमर उजाला कारोबार’ पर लगभग दो साल में तकरीबन खर्च पौने तीन करोड़ रुपए आया था, इसमें पूंजी व्यय भी शामिल है, जो अमर उजाला जैसे समूह के लिए ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ था। असल में यह अखबार बेवक्त शहीद हो गया।

भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की शुरुआत से ही भाषाई पत्रकारिता के लिए बिजनेस अखबार की जमीन बनने लगी थी। दस साल पहले भी यह जमीन इतनी बंजर नहीं थी कि कोई हिन्दी बिजनेस अखबार उस पर पनप न सके। पर आज यह जमीन बेहद उर्वर हो चुकी है जिसमें ऐसे कई वृक्षों के लहराने की अपार संभावनाएं हैं। मसलन, आप डीमैट खातों को ही लीजिए। शायद अधिकांश लोगों के मुख से डीमैट खातों की सर्वाधिक संख्या के लिए महाराष्ट्र या गुजरात का ही नाम निकलेगा। लेकिन सबसे ज्यादा डीमैट खाते तमिलनाडु में हैं। उत्तर प्रदेश भी इस मामले में महाराष्ट्र और गुजरात से आगे है। जाहिर है कि शेयर कारोबार आज मुंबई या अहमदाबाद की बपौती नहीं रहा है। रिलायंस पॉवर का उदाहरण देखें। इसका इश्यू 15 जनवरी को खुलेगा। इसके चलते पैन कार्ड पाने की प्रतीक्षा अवधि आठ-दस दिन से बढ़कर पच्चीस-तीस दिन हो चुकी है और नए डीमैट खाते खुलवाने के लिए अफरा-तफरी मची है। इन बानगियों से कोई भी समझ सकता है कि भाषाई बिजनेस अखबार का स्कोप कितना व्यापक हो चुका है।

आज आम आदमी के सामने यह समस्या है कि वह अपनी बचत को कैसे निवेश करे। बैंकों की जमा दरें इतनी कम हो चुकी हैं कि महंगाई को बेअसर करने में असमर्थ हैं। भविष्य निधि और राष्ट्रीय बचत पत्रों ने अपनी चमक खो दी है। जमीन जायदाद में निवेश के लिए भारी पूंजी चाहिए, जो 80 फीसदी निवेशकों के बूते के बाहर की बात है। निवेश की विवशताओं और कारोबार की आवश्यकताओं ने भाषाई बिजनेस अखबार का स्कोप असीमित बना दिया है। दस साल पहले देश में म्युचुअल फंड की संख्या नगण्य थी, अब उनकी भरमार है। इनके वैधानिक अनिवार्य विज्ञापनों ने अखबारों की आय के भारी स्त्रोत खोल दिए हैं। सूचीबद्ध कंपनियों के तिमाही विज्ञापन छपना अनिवार्य है। इंश्योरेंस सेक्टर में भी इन अखबारों की आय के लिए अकूत धन छुपा हुआ है। फाइनेंशियल सर्विस, बैंकिंग सेक्टर, प्रॉपर्टी, रिटेल और कंज्यूमरिज्म आदि ऐसे सेक्टर हैं जिनके बिना ‘अतुल्य भारत’ के आमजनों का जीवन अकल्पनीय है। निस्संदेह, छोटे और मझोले शहरों में स्टॉक और कमॉडटि ऑनलाइन ट्रेडिंग के फैलते जाल की महत्ता कारोबारी जगत के लिए ऑक्सीजन से कम नहीं है, लेकिन इन अखबारों सफलता-विफलता उनकी विषय-सामग्री पर ही निर्भर करेगी। जो अखबार पाठकों की आवश्यकताओं को जितना पूरा करेगा, वह वर्चस्व की लड़ाई में उतना ही आगे निकलेगा। क्योंकि अन्य संसाधनों में इस घमासान के कम से कम दो योद्धा एक-दूसरे से कमजोर पड़ने वाले नहीं हैं।

2 comments:

ओमप्रकाश तिवारी said...

बिहारी जी आप ने यह बेहतर काम किया है। जानकारी से भरा है यह आलेख।

bambam bihari said...

thank u tiwari ji, aap bhi is blog par apane vichar rakh sakate hai ya aise hi jankaripurn aalekh publish kar sakate hai.