Thursday 3 January, 2008

अब जाट तख्त से भी जारी होंगे फतवे

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से मात्र डेढ़ सौ किलोमीटर दूर कुरुक्षेत्र की घटना (परिघटना) है। जाट बिरादरी से जुड़े स्वयंभू नेताओं ने अकाल तख्त (सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था) की तर्ज पर जाट तख्त का गठन किया है। यह जाट तख्त क्या करेगा, यह सवाल शायद पूछने की जरुरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि जाट तख्त बनाने में सक्रिय भूमिका निभाने वाले दिल्ली में कमीश्नर रह चुके वीरेंद्र सिंह व उनके साथियों ने यह तख्त बनाने से पहले एक ही गोत्र में शादी करने वाले कैथल के मनोज व बबली की हत्या करने के अारोपियों को दो बार सम्मानित किया है। अारोपियों के सम्मान में अायोजित समारोह में जो घोषणाएं हुईं है। वह भी गौर करने लायक है कि हत्या के अारोपियों की अदालत में लड़ाई पूरा जाट समाज ( वीरेंद्र सिंह व उनके साथी) लड़ेगा। कोई भी समाज का अादमी अारोपियों के खिलाफ अदालत में गवाही नहीं देगा। इसके अलावा राज्य के अलावा जहां भी जाट हैं, वहां घूम-घूमकर यह बताया जाएगा कि कैसे समाज की रक्षा के लिए हत्या करने से भी वे (हत्या के अारोपी) पीछे नहीं हटे। खुद और अपने पूरे परिवार को समाज की रक्षा के लिए खतरे में डाला। हत्या के अारोपियों के सम्मान में समारोह अायोजित करने वाले वीरेंद्र सिहं व उनके साथियों ने अब खुद को जाट समाज का प्रतिनिधि घोषित कर दिया है। इसी कड़ी में उन्होंने जाट तख्त बनाया है। जाट तख्त ने अपने गठन के साथ कुछ फैसले भी लिए हैं, जो ठीक उसी तरह के हैं, जैसा पंजाब में अातंकवाद के दौर में खाड़कू एक बड़े वर्ग का समर्थन हासिल करने के लिए जारी करते थे। अाश्चर्य की बात यह है कि हरियाणा का प्रशासन इसे लेकर उदासीन सा बना हुअा है। यह वही प्रशासन है, जो अब से छह महीने पहले अधिकारों की मांग करने वाले दलित युवक-युवतियों को माओवादी घोषित कर दिया था।

1 comment:

मृत्युंजय कुमार said...

जब तख्तों के रूप में इतनी संविधानेत्तर संस्थाएं बन जाएँगी तो कानून क्या करेगा? सरकार को ऐसे कदमों पर गंभीरता से सोचना चाहिए। जहां तक अकाल तख्त की बात है, उसकी एक ऐतिहासिकता है, एक धार्मिक महत्व है। इस जाट तख्त में तो सिर्फ राजनीति या देखादेखी नजर आ रही है।