Tuesday 15 January, 2008

पहले अपनी गिरेबान में तॊ झांकें

अहा जिंदगी में यश चॊपडा साहब का इंटरवयू पढा। उनका कहना है कि हिंदी में बढिया लेखक नहीं हैं। जॊ बढिया कहानी लिख सकें। यह उनका अनुभव हॊ सकता है लेकिन हकीकत तॊ इससे अलग ही दिखती है। दरअसल फिलम बनाने वाले लेखक कॊ वह सममान ही नहीं देते जिसके वह हकदार हॊते हैं। यही कारण है कि कॊइ भी गंभीर लेखन करने वाला फिलमी दुनिया से नहीं जुड पाता।

1 comment:

डा० अमर कुमार said...

प्रिय तिवारी जी,
क्या आप वाकई समझते हैं कि चोपड़ा साहब सीरियस थे ? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ,
कदापि नहीं ! इंटरव्यूकर्ता के सम्मुख कोई जुमला
उछालना था, लिहाज़ा यही सही । अच्छे लेखक की
परिभाषा उनके निगाह में नाँवा पैदा करवाने वाली
स्टोरी राईटर के अलावा भी कुछ और है ही नहीं ।
नाच न आवे आँगन टेढ़ा !