Thursday 14 February, 2008

पीएम हाउस में मोर नाचा

कहानी

ओमप्रकाश तिवारी

सुबह नींद मोबाइल की धुन बजने से खुली। आंख मिचमिचाते हुए मोबाइल के मुंह को खोला तो उधर से एक मित्र की आवाज आई।
- या कर रहे हो?
- या करें?
- आज का अखबार देखा?
- नहीं, या हो गया? अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ है या?
- अरे नहीं यार।
- फिर या देश से गरीबी मिट गई?
- सुबह-सुबह या बकवास कर रहा है?
- बकवास मैं कर रहा हूं कि तू। कितनी बढ़िया नींद आ रही थी। जगा दिया।
- अरे जागो प्यारे मोहन, यह जागने का व त है।
- यों? या देश से बेरोजगारी खत्म हो गई?
- अरे, नहीं यार।
- फिर या अमेरिका ने किसी देश पर हमला किया है?
- ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है।
- तो फिर या हुआ है?
- पीएम हाउस में मोर नाचा है प्यारे मोहन।
- तू पागल हो गया है या? मोर जंगल में नाचता है बच्चे।
- इसीलिए तो कह रहा हूं प्यारे मोहन, जागो, उठो और अखबार पढ़ो।
दोस्त ने फोन काट दिया। मेरी भी नींद भाग गई।
साले मोर को या हो गया? जंगल छाे़डकर पीएम हाउस में आ गया। सोचते हुए चारपाई से उठा। दरवाजे पर गया और अखबार उठा लाया।
पहले पन्ने पर ही पीएम हाउस में नाचते हुए मोर की तस्वीर छपी थी।
-अरे वाह! यह तो कमाल हो गया। पूरा का पूरा सिद्धांत और दर्शन ही बदल गया। मेरे मुंह से ये शब्द अनायास ही निकल पड़े।
तस्वीर के साथ समाचार भी छपा था। शीर्षक था-पीएम हाउस में मोर नाचा। लिखा था कि आज जब प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाने से पहले अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से विदा ले रहे थे तो उसी व त पीएम हाउस में एक मोर नाचने लगा। मोर को नाचते देख पीएम हाउस में अफरा तफरी मच गई। हर कोई यही कह रहा था कि यह मोर यहां पर कैसे आ गया? प्रेस फोटोग्राफरों और टीवी कैमरा वालों के लिए यह ऐतिहासिक क्षण था। सभी नाचते हुए मोर की तस्वीर अपने कैमरे मेें कैद करने लगे। कुछ उत्साही टीवी पत्रकार और कैमरामैन तो मयूरनृत्य को लाइव दिखाने लगे। सबसे पहले की हाे़ड में चैनल वाले टूट पड़े और उसके पत्रकार मोर के बारे में कुछ भी बोले जा रहे थे। चैनलों के स्टूडियो में बैठी एंकर भी अजीबो गरीब सवाल पूछे जा रही थी। ब्रेकिंग न्यूज चल रही थी कि पीएम हाउस की सुरक्षा में सेंध। मोर पीएम हाउस में घुसा और नृत्य कर रहा है। सुरक्षा बलों के बयान लिए जा रहे हैं। नेताआें से टिप्पणी मांगी जा रही है। स्टूडियों में विशेषज्ञ बुला लिए गए है। गहन परिचर्चा भी आरंभ हो गई है। चैनल देखकर ऐसा लगा कि देश पर घोर विपदा आ गई है। एक चैनल की एंकर ने अपने संवाददाता से सवाल किया कि या अब भी प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जाएंगे? संवाददाता ने कहा कि इस संबंध में जानकारी तो नहीं मिल पाई है लेकिन मेरा मानना है कि पीएम को अपनी यात्रा रद कर देनी चाहिए। यात्रा से पहले अपशगुन हुआ है। अभी मोर घुस आया है। अगर आतंकवादी घुस आता तो या होता। एंकर ने फिर सवाल किया कि यदि आतंकवादी घुस आता तो या होता? कितना नुकसान पहुंचाता? या मार दिया जाता? या अपने मकसद में कामयाब हो जाता? संवाददाता फिर बोला कि कुछ भी हो सकता था। वह अपने मकसद में कामयाब भी हो जाता। पकड़ा भी जा सकता था।
टीवी चैनलों की इस गहमा गहमी के बीच पीएम अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों से विदाई लेते रहे। हर कोई उन्हें झुकर सलाम कर रहा है। फूलों का गुलदस्ता भेंट कर रहा है और तस्वीरें खिंचवा रहा है, लेकिन मोर के नाचने से यहां पर व्यवधान पड़ा। चूंकि मीडिया मयूरनृत्य पर मोह गया तो नेतानृत्य की तस्वीर कौन खींचे? ऐसे में नेताआें की त्योरी चढ़ गई। सुरक्षाबलों को आदेश हुआ कि मोर को जल्दी भगाओ। इस पर जवाब मिला कि चैनल वाले लाइव दिखा रहे हैं। यह जवाब मिलना था कि एक नेता चीखा। इसीलिए तो कह रहा हूं कि मोर को भगाओ, नहीं तो ये मूर्ख लोग पता नहीं या- या करेंगे? यहां प्रधानमंत्री इतने महत्वपूर्ण दौरे पर जा रहे हैं। हम लोग मिलने आए हैं। ऐसी शुभ घड़ी पर इस कार्यक्रम को दिखाने के बजाए मयूरनृत्य का सीधा प्रसारण कर रहे हैं।
कुछ जवान मोर को भगाने के लिए गए तो मीडिया वालों ने विरोध कर दिया। बोले यार इतनी बढ़िया बाइट्स मिल रही है। यों चौपट कर रहे हो। जो इसे लाइव दिखा रहे हैं उनकी टीआरपी बढ़ जाएगी। ऐसे में भैये यह मोर नहीं हमारे लिए तो भगवान है। इसकी आरती कर लेने दे भाई।
जवान बोले कि लेकिन नेता जी विरोध कर रहे हैं। कह रहे हैं कि उनके कार्यक्रम को लाइव करो। यह सुनना था कि कई टीवी चैनल के पत्रकार हंसकर बोले कि उनसे बोलो कि ऐसा ही नृत्य वह भी करें। उनका भी सीधा प्रसारण कर देंगे। अभी तो आप जाओ और इसे नाचने दो। इसके जवाब में एक जवान ने चुटकी ली कि भाई नृत्य तो वह भी कर रहे हैं लेकिन आप लोगों को उनकी नाच शायद अच्छी नहीं लग रही है।

मोर को बिना भगाए जवान वापस लौटे तो एक नेता चीखा कि या हुआ?
- मीडिया वाले मोर को भगाने नहीं दे रहे हैं।
- तो इन सालों को भी भगा दो। नमक हराम, कमीने कहीं के।
- जवान जाने लगा तो नेता फिर चीखा। साले ऐसे न मानें तो मोर को गोली मार दो।
- लेकिन सर, वह राष्ट ्रीय पक्षी है और यह मीडिया वाले।
- तो या हुआ? हम किसी की परवाह नहीं करते। नेता गुस्से में बोला।
इसी बीच पीएम वहां से निकल कर बाहर आ गए। वह अपनी कार में बैठे ही थे कि मीडिया भी उनके पीछे भागा।
मयूरनृत्य का सीधाा प्रसारण बंद।
जब मीड़िया वाले चले गए तो मोर ने भी नाचना बंद कर दिया। इधर-उधर निगाह दाै़डाया और पास की झाड़ियों में गुम हो गया।
समाचार पढ़कर जम्हाई ले रहा था कि मित्र का फोन फिर आया।
- अखबार पढ़ा या?
- हां, पढ़ा।
- तो यह बताओ पीएम हाउस में मोर यों नाचा?
मुझसे कोई उत्तर देते नहीं बना, मैं चुप रहा। फिर मुझे लगा कि मित्र से ही पूछ लेना चाहिए।
- इसका उत्तर तो तू ही बता सकता है बच्चे।
- साजिश प्यारे मोहन साजिश
किसकी?
- पाकिस्तान की
वह भला यों?
- योंकि प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे थे। पाकिस्तान नहीं चाहता कि हमारे रिश्ते अमेरिका से ठीक हों।
- वह भला यों?
- योंकि यदि अमेरिका हमारा दोस्त बन जाएगा तो पाकिस्तान किसके दम पर हमें धमकाएगा। यों? सही कह रहा हूं न?
- अब तू कह रहा है तो सच ही कह राह होगा।
दोस्त ने फोन काट दिया। मैं सोच में पड़ गया। पीएम हाउस में मोर यों नाचा? या कारण हो सकता है? यही सब सोचते-सोचते मुझे नींद आ गई।
सपने में मेरी मुलाकात पीएम हाउस में नृत्य करने वाले मोर से होती है। मंै उससे सवाल करता हूं।
- हे मेरे देश के राष्ट ्रीय पक्षी। आपने पीएम हाउस में नृत्य यों किया?
- योंकि आपके प्रधानमंत्री अमेरिका की यात्रा पर जा रहे थे।
- महोदय, उनकी अमेरिका यात्रा से आपके नृत्य का या संबंध?
- हे भले मानुस। या तुम इतना भी नहीं जानते कि पूरी दुनिया में अमेरिका के इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता।
- जानता हूं वत्स।
- तो, श्रीमान जी बेवकूफों जैसा सवाल यों कर रहे हैं?
- वत्स, बेवकूफ तो तुम हो जो जंगल छाे़डकर पीएम हाउस में नाच रहे हो।
- नहीं श्रीमान। आपका आरोप निराधार और बेबुनियाद है। आपको ज्ञात होना चाहिए कि धरती पर जंगल कितने बचे हैं। कितने प्राणी लुप्त हो गए हैं। हमारी जाति भी संकट में है। इसी संकट के निदान के लिए मैं पीएम हाउस गया था। सोचा था बढ़िया नृत्य करुंगा तो पीएम प्रसन्न हो जाएंगे। लेकिन वहां तो पहले से ही नृत्य करने वाले मौजूद थे। उनके आगे मेरी एक न चली। हां, मीडिया वालों ने अपने चैनलों पर दिखाकर मेरे महत्व को रेखांकित जरूर किया, लेकिन उन्होंने भी मुझे आतंकवादी बनाकर प्रस्तुत किया। खैर, इससे या फर्क पड़ता है। मुझे कवरेज तो मिल ही गई। अब यह खबर अमेरिका तक तो पहुंच ही जाएगी। हो सकता है अमेरिका हमारी जाति के लिए भी कुछ करे। किसी पैकेज-वैकेज की घोषणा करे। ताकि हम विलुप्त होने से बच जाएं।
- वत्स, तुम तो बड़े समझदार निकले।
- श्रीमान जी, यह समझदारी आदमियों की सोहबत से ही आई है।
- मैं समझा नहीं वत्स।
- श्रीमान जी, जब मैं बहुत छोटा था तो मुझे एक आदमी जंगल से पकड़ कर ले गया। मैं अपने माता-पिता और दोस्तों के लिए बहुत तड़पा, लेकिन उसने मुझे पिंजरे मेंं कैद करके रखा। धीरे-धीरे मुझे भी अच्छा लगने लगा। मां-बाप को भूल गया। इस तरह आदमियों वाले गुण मुझमें आते गए। बाद में तो वह मुझे पिंजरे से आजाद कर दिया। फिर भी मैं जंगल में नहीं गया। योंकि मैं जान गया था कि जंगल रह ही नहीं गए हैं। हमारी जाति संकट में है। ऐसे में उसी आदमी के साथ रहने में ही मुझे अपनी भलाई दिखी। सोचा इसके यहां रहकर ही मैं अपनी जाति केलिए कुछ कर सकता हंू। धीरे धीरे उसकी सारी आदतें मुझमें आ गइंर्। बिना दुम के भी दुम हिलाने की उसकी कला मुझे बहुत पसंद आई। वह इसी कला से बड़े से बड़ा काम करवा लेता। एक दिन मंैने भी सोचा कि मैं भी इस कला का प्रदर्शन करके अपनी जाति को बचाऊंगा। बस यही सोचकर पीएम हाउस पहुंच गया। अब देखो या परिणाम सामने आता है।
- परिणाम अच्छा ही आएगा वत्स।
- मैं वत्स नहीं, तुम्हारी पत्नी हूं। इतना दिन चढ़ गया और अभी तक सो रहे हो। पत्नी की आवाज सुनकर मैं जागा तो बड़ी देर तक खुद पर यकीन नहीं हो रहा था।

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