Wednesday 20 February, 2008

बिना दुम के दुम हिलाना देह का इस्तेमाल नहीं है?

कामगार औरतों की आत्मा पर अपमान के अनगिनत निशान होते हैं। औरतों ने मुंह खोलना शुरू किया तो एक दूसरे इतिहास की रचना होगी, पर कौन देगा उन्हें मुंह खोलने का अधिकार? उन्हें खुद ही हासिल करना होगा।?
- प्रसिद्ध रंगकर्मी उषा गांगुली


समाज में कामकाजी महिलाआें का चरित्र 'संदिग्ध` के दायरे में रहता है। दफ्तर में महिला कर्मचारी की तर की 'संदिग्ध` नजरों से देखी जाती है। कभी-कभी अश्लील फब्तियां भी कसी जाती हैं। समाज में कामकाजी महिला की उन्नित भी 'संदिग्धता` के दायरे में ही रहती है। मुंह पर न सही, पीठ पीछे लोग उसके चरित्र पर फिकरे कसते ही हैं। जबकि ऐसी ही उन्नति यदि कोई पुरुष करता है तो उसका नाम भ्रष्ट ाचार से जाे़डा जाता है। उसे नंबर-२ की कमाई कहा जाता है। पुरुष सत्ता मूलक समाज की यही मानसिकता स्त्री को केवल वस्तु मानने के लिए विवश करती है। पुरुष स्त्री को देह से आगे देख-समझ नहीं पाता है। स्त्री के प्रति पुरुष की मानसिकता कितनी घृणित है उसे समाज में फैली तमाम गलियों से समझा जा सकता है। कोई की जब किसी को गाली देता है तो मां-बहन और बेटी की गाली देता है। पुरूष के हंसी-मजाक में भी औरत के शारीरिक अंग का उल्लेख बेहद अश्लील और अभद्रता से किया जाता है। सड़क पर या गली में संभोगरत कुत्ते-कुतियों को देखकर पुरुष नहीं शर्माता लेकिन महिला शर्मा जाती है, जो नहीं शर्माती उसे बेशर्म का तमगा दे दिया जाता है। ऐसी मानसिकता के साथ कोई समाज औरत के प्रति कैसे संवेदनशील हो सकता है? कामकाजी महिलाएं (इसमें मीडिया भी शामिल है) जब अपने दफ्तरों में तर की करती हैं तो उनका संबंध उनके बॉस से सहज ही जाे़ड दिया जाता है। (हालांकि कई बार यह सही होता है कि स्त्री अपने देह को माध्यम बनाकर सफलता के दुर्ग पर अपना परचम लहराती है, लेकिन इसे ही सत्य मान लेना उचित नहीं कहा जाएगा। इसे स्त्री कौम की बेइज्जती भी कहा जाएगा।
किसी दफ्तर में कोई लड़की (युवती या महिला) आई नहीं कि उसे पटाने के लिए युवकों-वयस्कांे (पुरुषों) में हाे़ड लग जाती हैं। आखिरकार लड़की भी हाड़-मांस की बनी है। उसके पास भी दिल-दिमाग है। संवेदनाएं और भावनाएं हैं। वह कब तक बची रह सकती है? इस प्रक्रिया में यदि उसने किसी सहकर्मी या बॉस का ही दामन थाम लिया तो बाकी के 'असफल` लोग उसके पीछे पढ़ जाते हैं। उसके चरित्र पर चटकारे ले-लेकर बातें करते हैं। जिसमें से अधिकतर कुंठित दिमाग की उपज कपोल कल्पित कथाएं होती हैं, जो अश्लीलता के नरककुंड में सरोबोर होती हैं।
लड़की पट गई तो वह चरित्रहीन हो गई, लेकिन जो उसे पटाने का काम करते हैं उनके चरित्र को या कहा जाए?

दफ्तरोें में, खास करके मीडिया के, देखा गया है कि लड़की (युवती-महिला)को पटाने के लिए पुरुष उसके हर काम को करने के लिए तैयार रहता है। कभी-कभी तो वह अपना भी काम करता है और लड़की के बदले भी करता है। पुरुष की इस प्रक्रिया (हरकत)को या कहा जाए? या वह अपनी देह से स्त्री की देह तक पहुंचने का कार्य नहीं करता? या जब किसी युवती-स्त्री का किसी युवक या पुरुष से संबंध बन जाता है तो इस संबंध के लिए केवल स्त्री की दोषी होती है? पुरुष नहीं होता? एक समान हरकत के लिए दोहरी मानसिकता समझ से परे होती है। पुरुष सत्ता यही मानसिकता पुरुषों में बचपन से ही घोलती है। इस संस्कार को हमारा नैतिक मूल्य कहा जाता है।

हमारे समाज में जिससे बलात्कार होता है वह घृणित हो जाती है और जो बलात्कार करता है वह अपराधी भी नहीं हो पाता, योंकि कानून सुबूत खोजता है और स्त्री अपनी 'अस्मिता` गंवाकर भी सुबूत नहीं दे पाती। समाज में ऐसे भी लोग मिल जाते हैं जो यह कहते फिरते हैं कि कोई पुरुष किसी महिला का बलात्कार करता ही नहीं। उनका कहना होता है कि बलात्कार में भी महिला की सहमती होती है, बिना सहमती के यौन संबंध बनाया ही नहीं जा सकता। ऐसी बातें करने वाले पता नहीं किस प्रयोगशाला में इसका परीक्षण किए होते हैं।
यहां अस्मिता शब्द पर गौर करना चाहिए। या महिला की ही अस्मिता होती है। पुरुष की नहीं होती? यदि नहीं होती तो यों? अवैध संबंधों से पुरुष का नैतिक पतन नहीं होता लेकिन स्त्री का चरित्र खराब हो जाता है। चरित्र के प्रति इस तरह का दोहरा मापदंड यों?
एक और अहम बात पर गौर किया जाना चाहिए। वह यह कि तर की के लिए देह का इस्तेमाल या केवल औरत ही करती है?
कामकाजी महिला दफ्तर में या समाज में तर की करती है तो कहा जाता है कि उसने देह का इस्तेमाल किया। हालांकि ऐसा सोचने वाले यह भूल जाते हैं कि औरत कई मायनों में पुरुष से ज्यादा जीवट और मेहनती होती हैं। और स्वाभमानी भी लेकिन चूंकि वह पुरुषों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील और भावुक होती हैं इसीलिए पुरुष उसका इस्तेमाल भी करता है और बदनाम भी।

यह तो हुई स्त्री की बात, लेकिन तर की के लिए या पुरुष अपनी देह का इस्तेमाल नहीं करता? या वह अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करता? अश्लीलता की हद तक चाटुकारिता करने को या कहेंगे? यह भी तो शरीर का ही इस्तेमाल है कि आप के पास पूंछ नहीं है लेकिन फिर भी हिला रहे हैं...। देह का इससे अश्लील इस्तेमाल और या हो सकता है? औरतों के पास जो है वह तो उसका इस्तेमाल करती हैं लेकिन पुरुष के पास जो नहीं है वह उसका भी इस्तेमाल करता है। इसीलिए यह कहना ठीक नहीं होगा कि तर की के लिए औरतें ही देह का इस्तेमाल करती हैं। इस मामले में पुरुष भी पीछे नहीं हैं।
- ओमप्रकाश तिवारी

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