Saturday 9 February, 2008

मुंबइॆ िकसी की बपौती नहीं


अानंद िसंह
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बिहार अौर उत्तर प्रदेश के लोगों के िखलाफ जहर उगलने के बाद बाला साहेब ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे अौर उनके भतीजे राज ठाकरे ने अप उन समस्त लोगों को अपना िनशाना बनाया है जो बाहरी राज्यों से यहां अाकर अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। ताजा बयान उद्धव ठाकरे का अाया है िजन्होंने कहा है िक मुंबई में रहने वाले बाहरी लोगों को मराठी सीखनी ही होगी। उनका यह भी कहना है िक मुंबइॆ एयरपोर्ट का नाम मराठी में होना चािहए, िहंदी या अंग्रेजी में नहीं। राज अौर उद्धव का बयान संकीर्णता की पराकाष्ठा है। यह उन लोगों को बढ़ावा देने वाला है जो छोटे राज्यों के बहाने देश भर में लोगों को लड़ाने का काम कर रहे हैं। जब इॆश्वर ने हमें बनाने में भेद नहीं िकया तो ये राज अौर उद्धव कौन होते हैं एक इंसान को मराठी या िबहारी के चश्मे से देखने वाले? राज अौर उद्धव, इन दोनों भाइॆयों ने िमल कर िजस तरीके से गैर मरािठयों के िखलाफ अिभयान चला रखा है, वह पूवाॆंचल (नाथॆ-इॆस्ट) के अल्फा मूवमेंट की याद िदलाता है। गोरखपुर में रहने वाले मराठी पिरवारों से जब मैंने बातचीत की तो उन सभी ने एकस्वर में राज का िवरोध िकया अौर दो टूक कहा िक ये लोग मराठा कौम को बरबाद कर रहे हैं। इनका कहना था िक राज का मराठी समाज में कोइॆ खास स्थान नहीं है िसवाय इसके िक वह बाला साहेब के भतीजे हैं। यही सत्य है। इस बात की जरूरत सबसे अिधक है िक अब लोग इनकी बातों का कड़ा से कड़ा प्रितकार करें।

2 comments:

Unknown said...

आनंद जी, मुबंई बेशक किसी की बपौती नहीं है लेकिन जरा याद कीजिए अपने झारखंड या बिहार में किसी दक्षिण भारतीय को हम कैसे तेलंगी या बंगाली को बंगलिया कहकर बुलाते हैं और जाने-अनजाने यह अहसास जरूर दिला देते हैं कि हम यहां के और और दूसरे राज्य वाले प्रजा है। कुछ ऐसा ही भाव राज ठाकरे है। गुस्साइए नहीं, रहम खाईए।

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

मीडिया नारद को कबीरा का प्रणाम। भाई क्यों राज-बालासाहेब जैसे लोगो का टेन्शन लिया जाये, इनको कोई मराठीयो ने ठेकेदारी नहीं दे रखी है। भाई मैं भी एक मराठी माणूस है एक ब्रह्नमहाराष्ट्रीयन। मैं अपने को मराठी नहीं एक इंसान अधिक समझता हू। छोडो इन "मनस" - "उत्तर भारतीय मनस" के नाम पर लडने वाले मुर्खो को।