Thursday, 11 September 2008
गोविंदा आपको पता है आप सांसद भी हैं
वेद विलास उनियाल
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आज की कांग्रेस पार्टी अपने स्वरूप को जितना महिमामंडित करे लेकिन उसे इस बात के लिए भी अफसोस होना चाहिए कि वह संसद की गरिमा घटाने के लिए पूरा इंतजाम करती है। ऐसा नहींं होता तो वह उत्तर मुंबई से राम नायक को किसी भी तरह हराने के लिए गोविंदा का चयन नहींं करती। गोविंदा के खाते में तब ही-ही, हू-हू किस्म की कुछ फिल्मों के अलावा कुछ नहींं था। सामाजिक क्षेत्र मेंं संलग्नता की बात है तो शायद उन्होंने कभी एक पौधा भी उस विरार में नहीं लगाया होगा जहां का वह अपने को छोरा कहते हैं। फिल्मोंं में भी फूहड़ हास्य से भरी हुई और पाम पाम मार्का गीतों पर फुदकने के अलावा उन्होंने पर्दे पर कुछ नहीं किया। बात बेबात पर हंसते रहने की आदत ऐसी कि दुआ की जाती है कि वह कहींं किसी जगह शोक जताने जाएं तो डर रहता है कि आदत के अनुसार यहां भी किसी फूहड़ बात को करके हंसने न लगे। खैर देश की उस राजनीतिक पार्टी ने जो अपने को तमाम नैतिकता और ऊंचे आदर्शो वाली पार्टी मानती है उन्हें टिकट दिया तो कोई या कर सकता है। और फिर जब उत्तर मुंबई वालों ने जिता ही दिया तो इस पर कोई और या करे। यह बात अलग है कि अब पोस्टर निकाल कर गुमशुदा की तलाश जैसे वा य लिखे जा रहे हैं।
उत्तर मुंबई के लोग भले उनकी तलाश करते रहें। लेकिन गोविंदा को इससे या लेना। वह अपनी चालू सस्ती कामेडी वाली फिल्मों मेंं व्यस्त है। उत्तर मुंबई के लिए उनकेपास समय नहींं है। सांसद के तौर पर वह केवल अपनी पार्टी के मुखिया के प्रति ही जिम्मेदार लगते हैं। आम लोगों की इतनी हिम्मत कहां उनसे पूछे जनाब अगर फिल्मोंं में ही मशगूल रहना था तो सांसद का काम रहने देते। कुछ तो काम होता इस क्षेत्र में। सांसद बनकर इतना अंहकारी रूप कि कोई कुछ पूछे तो रपट मार देते हैं। फिर चर्चा है कि उन्होंने किसी निर्देशक पर हाथ उठा लिया। उनकी कांग्रेस पार्टी को इससे कोई लेना देना नहीं कि एक सांसद इस तरह की हरकत कैसे करता है। विस्तृत के लिए यहाँ क्लिक करें .....
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5 comments:
मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि जब राजनीति उन्हें अच्छी नहीं लगती है , तो राजनीति में आने की उनको जरूरत क्या थी ?
उनियाल जी नमस्कार। क्या हाल हैं आपके। सच कहूं तो कस के दिया आपने भईया चीची को। लेकिन इसके साथ इस मंथन की भी जरूरत है कि क्या देश की जनता इसी तरह बेवकूफी भरा काम करती रहेगी और ऐसे ही लोगों को अपना प्रतिनिधि चुनेगी।
कहीं ना कहीं इसके लिए जनता ही जिम्मेदार है.
कहते हैं ना
जिसका काम उसी को छाजे
और करें तो डंडा बाजे.
हमारे देश के लोग ही मुर्ख हैं, जो इन जैसे भांडों को संसद जैसी महत्वपूरण जगह के लिए चुनते है. जनता को जागरूक होना होगा, तभी इन भांडों की महत्त्वाकांक्षा पर लगाम लगेगी. उनियाल जी आपने गोविंदा को उसी की भाषा में ठीक लिखा है. फिल्मी जगत में राजकपूर दिलीप कुमार देवानंद जैसे सुपर सितारे भी रहे हैं. लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया. इन ठुमके लगाने वालों को आपना आदर्श न बनायें. उन्हें भगवन न मानें.
वेद जी,
नमस्कार। आप लिखते अच्छा हैं इसमें कोई शक नहीं पर बहुत लंबा होता है। इतना लंबा पढ़ने में हमको थकान और बोरियत लगती है। कृपया आगे से छोटा दें।
धन्यवाद
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