Wednesday 17 September, 2008

यह कैसी राष्ट्रीय शर्म?


पिछले कई दिनों से अन्दर बहुत कुछ उबल रहा है। उडीसा में एक अल्पसंख्यक की हत्या राष्ट्रीय शर्म की बात बन जाती है सरकार के लिए, जब एक साल की बच्ची के साथ रेप होता है तो शर्म क्यों नही आती? जब हिंदुस्तान के आवाम युवा और बच्चो के चाहने के बाद भी सत्ता में बैठे लोग उस डाक्टर कलाम को राष्ट्रपति नही बनने नही देते जिनके लिए सब कुछ यह देश इसकी आने वाली जनरेशन है, तो शर्म क्यों नही आती? जब एक लाख लोग बाढ़ में डूब जाते है तो शर्म क्यों नही आती? जब आतंकी निर्दोष नागरिको की हत्या कर देते है, सांप्रदायिक दंगे होते है तो शर्म कहा चली जाती है। सिर्फ़ एक संप्रदाय के लिए शर्म क्यों कि उस संप्रदाय की महिला आज देश की सरकार को चलाती है। मैं इस तरह की हत्या का समर्थन बिल्कुलं नही कर रहा। जो निदनीय है सो है। पर विदेशो से धन ला कर कैसे धर्मान्तरण कराया जा रहा है, उसके परिणाम क्या होंगे, यह भी उन्ही को सोचना है जो राष्ट्रीय शर्म के बयान जारी करते है। धन के बल पर जो हो रहा है उसके सामाजिक परिणाम क्या होंगे यह कौन सोचेगा? ठीक है हम धरम निरपेक्ष हैं इसका अर्थ यही है कि धन और लालच से बदल डालो धरम। मुग़ल काल में भी तो यही हुआ था।यह धन कहा से आ रहा है आप सब जानते है। ऐसे ही दूसरी तरफ़ आतंकवादियों के लिए धन कहा से आ रहा है उसे रोक न पाने पर शर्म क्यों नही आती। जब संसद में दल बदल कराने के लिए दिए नोटों के बण्डल आते है तो भी शर्म नही आती। बस शर्म आती है तो उडीसा की घटना पर। क्या लोग समझते नही है। यह हिदुस्तान है जिसे सिकंदरे आजम ने समझने में गलती नही की थी रास्ता बदल लिया था। अब भी मौका है आप भी बदल डालो बदलना तो उनको भी होगा जो मन्दिर के नाम पर अरबो जमा कर बैठे है। उनका भी कर्तव्य है उन लोगो को मदद करने की जो जीने के लिए धरम बदलने को मजबूर है। पहले इन जिन्दा इमारतो को बचालो पत्थर की तो कभी भी बन जायेगी।

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