Friday, 26 September 2008

बंद करो फिल्मी लोगों को 'सितारे` कहना

विनोद के मुसान
अगर 'फिल्मी लोग` सितारों सी चमक बिखेरते तो, जरूर इनके चेहरों पर सितारों सा नूर होता। लेकिन, अफसोस ऐसा नहीं है। इनकी चमक सिनेमा के पर्दे पर तो दिखाई देती है मगर असल जिंदगी में इनके चेहरे धुंधले से नजर आते हैं। इसलिए अब व त आ गया है, जब आम लोगों को भी इन्हीं की तरह प्रोफेशनल बनकर सोचना पड़ेगा। 'सितारों` को सितारा कहना बंद करना पड़ेगा। एक हाथ से टिकट के पैसे लो, दूसरा लोगों को वो दिखाओ, जिसके लिए उन्होंने पैसे खर्च किए हैं। बात खत्म। रुपहले पर्दे के सितारे...। अरे...! किस बात के सितारे भाई? पर्दे पर नाच-गा कर ऐसा कौन सा तीर मार लिया, जो आपको सितारों का दर्जा दे दें।
वर्तमान परिदृश्य में सिनेमाई पर्दे की जो तस्वीर उभर कर सामने आ रही है, इसके बाद तो इन्हें सितारा कहना भी सितारों की तौहीन है। सितारे इस जग को रोशन करते हैं। रात में टिमटिमा कर हमारी आंखों को सुकून देते हैं। बच्चों के सपनों में बसते हैं और दादा-दादी की कहानियों में आकर हमें मीठी लोरी सुनाते हैं। सदियों से सितारों ने दुनिया में नूर बिखेरने का काम किया है। पता नहीं लोगों ने कब और यों पर्दे पर नाचने-गाने वालों को 'सितारा` कहना शुरू कर दिया। जिस किसी ने भी ये शुरुआत की होगी, जरूर हकीकत की दुनिया से बाहर जीता होगा। अच्छा लगता अगर इस परंपरा के साथ देश के महान सुपूतों का नाम जु़डता। महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, शहीदे आजम भगत सिंह, रवींद्र नाथ टैगोर, मदर टैरेसा और कई ऐसी महान शख्सियतों को सितारा कहना सुखद लगता है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों की भलाई में लगा दिया। इनके द्वारा किए गए कामों की चमक आज भी बरकरार है और सदियों तक रहेगी।
रही बात फिल्म इंडस्ट्री में सितारे कहलाने वाले कलाकारों की, तो मुझे नहीं लगता इनमें से किसी एक ने भी कोई ऐसा काम किया हो (अभिनय को छाे़डकर) जिसे आने वाली पीढ़ी याद रखे।
आम लोग इन लोगों को भगवान की तरह पूजते हैं। भारत में तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो घर में फिल्मी कलाकारों की फोटो की पूजा करते हैं। इनका जन्मदिन आने पर बाकायदा पार्टी आयोजित की जाती है, केक काटकर इनकी फोटो को 'खिलाया` जाता है। चिढ़ होती है ऐसे ढकोसलों को देखकर। दो रोज पहले की बात है। मैं एक समाचार पत्र में एक संक्षिप्त सी खबर पढ़ रहा था। सलमान खान की एक फैन ने उसकी दुल्हन के लिए आठ लाख रुपए कीमत की डोली तैयार की है, जिसे वह उसकी शादी में गिफ्ट करना चाहती है। उसी समाचार पत्र के एक हिस्से में बिहार, उड़ीसा में आई बाढ़ का जिक्र भी था और बाढ़ पीड़ितों की मदद को गुहार भी। यकीन मानिए इस समाचार को पढ़ने के बाद उस 'दानी फैन` के लिए मन से कोई भी अच्छी बात नहीं निकली।
पीछे कुछ फिल्मी कलाकारों ने राजनीति में आकार देश सेवा करने की पहल भी की। आम जनता को लगा उनके हीरो परदे की तरह संसद में भी धूम मचाएंगे। उनकी सारी मुश्किलें फिल्म के 'एेंड` की तरह सुखद क्षणों के साथ खत्म हो जाएंगी। लेकिन, असल जिंदगी में या हो रहा है, ये सब जानते हैं। उत्तरी मुंबई के मतदाताआें को तो अपने फिल्मी सांसद को ढूंढ कर लाने वाले को बतौर ईनाम एक कराे़ड रुपए देने तक की घोषणा कर दी गई थी। फिल्मी परदे पर तोते की तरह पटर-पटर बोलने वाले ये 'माननीय` जब एक बार किसी को थप्पड़ मारने के केस में फंसे तो इनका चेहरा टीवी पर देखने लायक था। बोलती जैसे बंद हो गई, जुबान ने दिमाग का साथ छाे़ड दिया और ये हकलाने लगे।
स्टार का जिक्र हो और 'सुपर स्टार` की बात न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। एक जमाने से 'सुपर स्टार` का तमगा लिए घूम रहे बिग 'बी` की पूरी जिंदगी अपने इस तमगे को बचाने में ही चली गई। लोगों ने प्यार दिया, सम्मान दिया 'सुपर स्टार` का तमगा दिया। अब कोई इनसे पूछे माननीय आपने समाज को या दिया। इतनी शोहरत पाने के बाद चाय में थाे़डी 'चीनी कम` रह भी जाती तो या होता। आपने पूरी जिंदगी दोनों हाथों से दौलत बटोरी है। कितना अच्छा होता अगर आप इस दौलत का एक छोटा सा अंश समाज की भलाई में लगा देते। यकीन मानिए, इस दुनिया से जाने के बाद भी बिग 'बी` कहलाते।

1 comment:

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

पूरी तरह सहमत हूं आपसे। आदमी जब कोई खास मुकाम बना लेता है, तो लोगों के लिये, समाज के लिये वह आदर्श बन जाता है। लोग उसका अनुसरण करने की कोशिश करने लगते हैं। पर हमारे ये तथाकथित सितारे जो ना कर जाएं कम है। ये "सर्व गुण संपन्न" अजूबे तो अपने आप को इस देश का समझते ही नहीं। सोते जागते जिन की नज़र सिर्फ़ डालरों पर लगी रहे उनसे तो कोई उम्मीद रखना ही बेमानी है।