Wednesday, 17 September 2008

कोई राज ठाकरे को आइना तो दिखाए



महाराष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडागर्दी, चुपचाप उसका मुंह देखती मुंबई पुलिस और वोट बैंक के दबाव में अगल-बगल देखते राजनीतिक दलों के बीच पिस रहे हैं मेहनत कर मुंबई को आर्थिक राजधानी का खिताब दिलानेवाले उत्तर भारतीय। मराठियों और-उत्तर भारतीयों का रिश्ता कया सिर्फनफरत का है, दुश्मनी का है?-प्रस्तुत है इसका जवाब देती वरिष्ठ पत्रकार श्री निशीथ जोशी का अमर उजाला से साभार आलेख--

निशीथ
जोशी
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इन दिनों मराठा माणुस का मसला फिर उबाल पर है। कभी भाषा के नाम पर, तो कभी संस्कृति के नाम पर अब मुंबई में अकसर उत्तर भारतीयों पर गाज गिरने लगी है। मराठा माणुस के नाम पर राजनीति करने वालों को यह भी पता नहीं कि शहीद भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को जिस वीर मराठा ने चूमा था, उस शहीद की जन्मशती चंद दिनों पहले निकल गई। उनका स्मरण करने की बात किसी को याद नहीं आई। वैसे मराठा माणुस की लडाई लडने वालों को याद कराना चाहूंगा कि जब से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने शहादत का चोला पहना था, तब से किसी ने भी उन्हें अलग करने की जुर्रत नहीं की। अंगरेज तो कर ही नहीं पाए, पंजाबियों ने भी ऐसा नहीं होने दिया। फिर आप क्या करेंगे?जया बच्चन द्वारा हिंदी की वकालत करने पर इन्हें गुस्सा भी आता है। लेकिन क्या उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में जन्मे श्रीराम के सच्चे भक्त, सेवक और मित्र हनुमान महाराष्ट्र के नासिक जिले के आंजनेय क्षेत्र की अंजना माता के पुत्र थे? अगर थे, तो राम राज्य से चले आ रहे उत्तर भारत और महाराष्ट्र के रिश्ते को क्या ये चंद राजनेता तोड सकेंगे। जिन गणपति देव का पूजन महाराष्ट्र के घर-घर में होता है, उनके माता-पिता शिव-पार्वती का निवास भी तो उत्तर भारत में है। जिन श्लोकों से गणपति का पूजन होता है, उनकी रचना भी उत्तर भारत में ही हुई है। दो कदम आगे बढें, तो जिन भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी पर पूरा महाराष्ट्र दही-हांडी उत्सव में डूब जाता है, उनकी जन्म-भूमि भी उत्तर भारत में ही है। अगर यह सब सत्य है, तो उत्तर भारत और महाराष्ट्र के लोगों के बीच घृणा के बीज क्यों बोए जा रहे हैं?मराठा माणुस के ठेकेदारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिवाजी ऐसे वीर मराठा थे, जिन्होंने मुगलों के अत्याचार के खिलाफ जो जंग लडी थी, उसमें उत्तर भारतीयों और मराठों के बीच कोई भेद नहीं किया था। इसीलिए शिवाजी की सेना में उत्तर भारत के ऐसे अनेक योद्धा थे, जो उनके लिए हर पल अपने प्राण कुर्बान करने को तैयार रहते थे। क्या ऐसी कमाई करने की क्षमता आप में है? महिलाओं के लिए छत्रपति शिवाजी के मन में बहुत आदर था। नारी को वह मां, बहन और बेटी के रूप में देखते थे। जब 1657 में शिवाजी के कट्टर दुश्मन औरंगजेब के एक गवर्नर मुल्ला अहमद की पुत्रवधू गौहर बानो को उनके कुछ सैनिक उठा लाए थे, तो उसे बाइज्जत उसके घर पहुंचाया था। यह इतिहास बच्चों को पढाया जा रहा है। पता नहीं, राज ठाकरे ने पढा या नहीं। अगर नहीं पढा, तो उन्हें खुद को शिवाजी के पदचिह्नों पर चलने वाला मराठा कहने का हक नहीं है। जया बच्चन उनकी मां की ही उम्र की होंगी, फिर ऐसी महिला के लिए राज ठाकरे जिस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं, उसे सुनकर उन्हें मराठा संस्कृति का संरक्षक कैसे मान लिया जाए?ठीक है। आतंक और डर से कोई आपसे माफी मांग लेगा या फिर चुप्पी साध लेगा। लेकिन किसी से जबरदस्ती सम्मान आप नहीं ले सकते। अमिताभ बच्चन माफी मांगकर अपने बिग बी के कद से और बडे हो गए। वह अपने चहेतों के दिलों पर राज करते हैं। आप सारी ताकत लगाकर भी उनके चहेतों के दिलों से उनके सम्मान और प्यार को कम नहीं कर सकते। इसके उलट आप अपने बारे में कुछ और नफरत ही पैदा करा देते हैं।रही बात फिल्म नगरी मुंबई में होने की, तो मत भूलिए कि वह बॉलीवुड इसलिए बन सकी, क्योंकि उत्तर भारतीय कलाकारों ने भी उसे अपने फन से सींचा है। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर का खानदान हो या फिर नरगिस दत्त का। चिर युवा देवानंद हों या महान नायक दिलीप कुमार। मोहम्मद रफी हों या मजरूह सुल्तानपुरी। गीतकार गोपालदास नीरज रहे हों या साहिर लुधियानवी। आज भी बॉलीवुड में जिनका सिक्का चलता है, वह बच्चन परिवार, शाहरुख खान और अक्षय कुमार भी उत्तर भारतीय हैं। अगर इन सबको आपने फिल्म नगरी से निकालने की जुर्रत की, तो क्या आपकी राजनीति बचेगी? रही बात उत्तर भारत और उत्तर भारतीयों की, तो मत भूलिए कि जब मुगलों ने मराठों पर आक्रमण किया था, तो प्राण और धर्म की रक्षा के लिए महाराष्ट्र से पलायन करने वाले हम जैसे कितने चितपावन जोशी, पंत या काले के पूर्वजों को उत्तर भारत की भूमि ने ही अपनी गोद में जगह देकर उनकी पीढियों को सींचा है और सींच रही है। अब बंद कीजिए यह बकवास। नहीं तो लोकतंत्र आपको अपने ‘उचित’ स्थान पर पहुंचा देगा।

7 comments:

रवि रतलामी said...

यह तो आपने उजाला फ़ॉन्ट में कॉपी पेस्ट कर दिया है. यूनिकोडित रूप निम्न है:

महारााष्ट्र में राज ठाकरे की गुंडागर्दी, चुपचाप उसका मुंह देखती मुंबई पुलिस और वोट बैंक के दबाव में अगल-बगल देखते राजनीतिक दलों के बीच पिस रहे हैं मेहनत कर मुंबई को आर्थिक राजधानी का खिताब दिलानेवाले उत्तर भारतीय। मराठियों और-उत्तर भारतीयों का रिश्ता कया सिर्फनफरत का है, दुश्मनी का है?-प्रस्तुत है इसका जवाब देती वरिष्ठ पत्रकार श्री निशीथ जोशी का अमर उजाला से साभार आलेख-
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निशीथ जोशी
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इन दिनों मराठा माणुस का मसला फिर उबाल पर है। कभी भाषा के नाम पर, तो कभी संस्कृति के नाम पर अब मुंबई में अकसर उत्तर भारतीयों पर गाज गिरने लगी है। मराठा माणुस के नाम पर राजनीति करने वालों को यह भी पता नहीं कि शहीद भगत सिंह और सुखदेव के साथ फांसी के फंदे को जिस वीर मराठा ने चूमा था, उस शहीद की जन्मशती चंद दिनों पहले निकल गई। उनका स्मरण करने की बात किसी को याद नहीं आई। वैसे मराठा माणुस की लडाई लडने वालों को याद कराना चाहूंगा कि जब से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने शहादत का चोला पहना था, तब से किसी ने भी उन्हें अलग करने की जुर्रत नहीं की। अंगरेज तो कर ही नहीं पाए, पंजाबियों ने भी ऐसा नहीं होने दिया। फिर आप क्या करेंगे?जया बच्चन द्वारा हिंदी की वकालत करने पर इन्हें गुस्सा भी आता है। लेकिन क्या उन्हें पता नहीं है कि अयोध्या में जन्मे श्रीराम के सच्चे भक्त, सेवक और मित्र हनुमान महाराष्ट्र के नासिक जिले के आंजनेय क्षेत्र की अंजना माता के पुत्र थे? अगर थे, तो राम राज्य से चले आ रहे उत्तर भारत और महाराष्ट्र के रिश्ते को क्या ये चंद राजनेता तोड सकेंगे। जिन गणपति देव का पूजन महाराष्ट्र के घर-घर में होता है, उनके माता-पिता शिव-पार्वती का निवास भी तो उत्तर भारत में है। जिन श्लोकों से गणपति का पूजन होता है, उनकी रचना भी उत्तर भारत में ही हुई है। दो कदम आगे बढें, तो जिन भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी पर पूरा महाराष्ट्र दही-हांडी उत्सव में डूब जाता है, उनकी जन्म-भूमि भी उत्तर भारत में ही है। अगर यह सब सत्य है, तो उत्तर भारत और महाराष्ट्र के लोगों के बीच घृणा के बीज क्यों बोए जा रहे हैं?
मराठा माणुस के ठेकेदारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि शिवाजी ऐसे वीर मराठा थे, जिन्होंने मुगलों के अत्याचार के खिलाफ जो जंग लडी थी, उसमें उत्तर भारतीयों और मराठों के बीच कोई भेद नहीं किया था। इसीलिए शिवाजी की सेना में उत्तर भारत के ऐसे अनेक योद्धा थे, जो उनके लिए हर पल अपने प्राण कुर्बान करने को तैयार रहते थे। क्या ऐसी कमाई करने की क्षमता आप में है? महिलाओं के लिए छत्रपति शिवाजी के मन में बहुत आदर था। नारी को वह मां, बहन और बेटी के रूप में देखते थे। जब 1657 में शिवाजी के कट्टर दुश्मन औरंगजेब के एक गवर्नर मुल्ला अहमद की पुत्रवधू गौहर बानो को उनके कुछ सैनिक उठा लाए थे, तो उसे बाइज्जत उसके घर पहुंचाया था। यह इतिहास बच्चों को पढाया जा रहा है। पता नहीं, राज ठाकरे ने पढा या नहीं। अगर नहीं पढा, तो उन्हें खुद को शिवाजी के पदचिह्नों पर चलने वाला मराठा कहने का हक नहीं है। जया बच्चन उनकी मां की ही उम्र की होंगी, फिर ऐसी महिला के लिए राज ठाकरे जिस तरह के शब्दों का उपयोग करते हैं, उसे सुनकर उन्हें मराठा संस्कृति का संरक्षक कैसे मान लिया जाए?
ठीक है। आतंक और डर से कोई आपसे माफी मांग लेगा या फिर चुप्पी साध लेगा। लेकिन किसी से जबरदस्ती सम्मान आप नहीं ले सकते। अमिताभ बच्चन माफी मांगकर अपने बिग बी के कद से और बडे हो गए। वह अपने चहेतों के दिलों पर राज करते हैं। आप सारी ताकत लगाकर भी उनके चहेतों के दिलों से उनके सम्मान और प्यार को कम नहीं कर सकते। इसके उलट आप अपने बारे में कुछ और नफरत ही पैदा करा देते हैं।
रही बात फिल्म नगरी मुंबई में होने की, तो मत भूलिए कि वह बॉलीवुड इसलिए बन सकी, क्योंकि उत्तर भारतीय कलाकारों ने भी उसे अपने फन से सींचा है। चाहे वह पृथ्वीराज कपूर का खानदान हो या फिर नरगिस दत्त का। चिर युवा देवानंद हों या महान नायक दिलीप कुमार। मोहम्मद रफी हों या मजरूह सुल्तानपुरी। गीतकार गोपालदास नीरज रहे हों या साहिर लुधियानवी। आज भी बॉलीवुड में जिनका सिक्का चलता है, वह बच्चन परिवार, शाहरुख खान और अक्षय कुमार भी उत्तर भारतीय हैं। अगर इन सबको आपने फिल्म नगरी से निकालने की जुर्रत की, तो क्या आपकी राजनीति बचेगी? रही बात उत्तर भारत और उत्तर भारतीयों की, तो मत भूलिए कि जब मुगलों ने मराठों पर आक्रमण किया था, तो प्राण और धर्म की रक्षा के लिए महाराष्ट्र से पलायन करने वाले हम जैसे कितने चितपावन जोशी, पंत या काले के पूर्वजों को उत्तर भारत की भूमि ने ही अपनी गोद में जगह देकर उनकी पीढियों को सींचा है और सींच रही है। अब बंद कीजिए यह बकवास। नहीं तो लोकतंत्र आपको अपने ‘उचित’ स्थान पर पहुंचा देगा।

Anonymous said...

kuch logon ne sun liya to apke pechhe pad jayenge dnda lekar...jaise Firdaus ke pade hain...

राजीव उत्तराखंडी said...

महोदय, आपने बहुत ही अच्छे तरीके से राज ठाकरे को आईना दिखाया है। मराठी होने का राग अलापने वाला राज ठाकरे का इतना अज्ञानी है कि उसे जंग-ए-आजादी के सिपाही राजगुरू के बारे में ही पता नहीं है अन्यथा वहउततर-दक्षिण का शोर मचाने के बजाय उनकी जन्मशती मनाते हुए राष्ट ्र की एकजुटता का आह्व ान करता। मेरी नजर में यासीन मलिक और राज ठाकरे में कोई अंतर नहीं है। दोनो ही अलगाववादी हैं। फर्क यह है कि एक बंदूक-गोली का इस्तेमाल करता है तो दूसरा मुंह-बोली का इस्तेमाल। दोनो ही देश को बांटने के काम में जुटे हुए हैं।
महोदय, आपने हनुमान जी के बारे में बताया कि उनकी माता अंजनी दक्षिण प्रदेश की थी, यह जानकारी मुझे नहीं थी। मेरे ज्ञानकोश में एक जानकारी बढ़ाने के लिए आपका आभारी हूं।

रंजन राजन said...

मराठा सम्मान के नाम पर दहशत फैलाकर राज कर रहे राज ठाकरे को सचमुच आइना दिखा दिया आपने।
कभी इलाका, तो कभी भाषा या संस्कृति के नाम पर राष्ट्रीय एकता की भावना को लगातार चोट पहुंचा रहे सनकी राजनेता से शहीदों के सम्मान की उम्मीद करना भी बेमानी होगी, वह शहीद चाहे मराठा माणुस ही क्यों न हो। आपके द्वारा दिखाए गए इस आइने में कथित रूप से धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे राजठाकरे का असली चेहरा धार्मिक सहिष्णुता के दुश्मन के रूप में दिख रहा है। ऐसे राजनेता को न तो राष्ट्रीयता से मतलब होता है और न ही धर्म से, उसे तो सिर्फ दहशत का राज कायम कर अपनी दुकानदारी चलानी है। मैं इस बात से सहमत हूं कि माफी मांगने से अमिताभ बच्चन का कद छोटा नहीं हुआ है, लेकिन ऐसे राजनेता के सामने सदी के महानायक कहलाने वाले अभिनेता का बार-बार माफी मांगना उचित नहीं लगता।

Unknown said...

sir namaskar,
raj thakrey ke bare me aapne jo likha hai wah wastav me satya ka aaena hai.
ritesh

ved vilas uniyal said...

शिवसेना से अलग होने के बाद राजठाकरे शिवसेना के पुराने चेहरे के साथ ही सामने आए। उनके पास नया कुछ नहीं था। वह कोई रचनात्मक भूमिका वाले नेता नहीं है। आपने उन तमाम पहलुओं को पौराणिक आख्यान और वर्तमान संदर्भ के साथ सामने रखा जिससे यह बात ठोस तरीक से सामने आए कि युगों से आजतक भारत का अस्तित्व हिमालय से गंगासागर तक है। लेकिन इस बारे में यह कहना उचित समझता हूं कि माहौल बिगाड़ने में जितना हाथ राज ठाकरे का है हमारे उत्तर भारतीय नेताओं का कम नहीं। उत्तर भारतीय नेता चाहे मुंबई के हों या फिर उत्तर प्रदेश, बिहार के उन्होंने मुंबई में अपनी जमकर राजनीति की। मुंबई में आठ लाख उत्तराखंडियों के बीच कोई नेता नहीं उभरा। उत्तर भारतीयों के हितों की बात किसी ने कभी नहीं की। आखिर महाराष्ट्र ने ही उत्तर भारतीयों को सांसद विधायक मिनिस्टर बनाए, पर वे अपनी राजनीति खेलते रहे। आज भी मुलायम सिंह, अमर सिंह, लालू यादव जैसे नेता मुंबई जाते हैं और साउथ मुंबई के आलीशान होटलों में पसर जाते हैं। वहीं अखबार मीडिया को बुलाते हैं। शाम को शिवाजी पार्क में जाकर कुछ जुमले कह जाते हैं। अमिताभ बच्चन का आपने संदर्भ लिया। सपा से रिश्ते सुधरने पर सोनिया गांधी को उनकी चिंता होने लगी। सोनिया और उनकी कांग्रेस क्या उस अदमी को भी जानती है जिसके दोनों हाथ कट जाने से उसे परिवार सहित वापस बिहार आना पड़ा। यह केवल इन राजनेताओं का पाखंड है। मुंबई कांग्रेस के प्रमुख हैं कृपाशंकर। क्या कुछ किया है उन्होंने उत्तर भारतीयों के लिए। मजेदार बात यह कि इन दिनों अमिताभ बच्चन भी प्रियंका गांधी की बुहत तारीफ करने लगे हैं। किस बात की तारीफ। शिमला में घऱ खरीदने की, दो बच्चों के देखभाल करने की। बींजिंग में ओलंपिक देख कर आने की। अमिताभ उस बैंडिमिटन खिलाड़ी शाइना की तारीफ नहीं करेंगे जिसने शानदार खेल से बड़ी उम्मीदें जगा दी। समय की नजाकत को देखते हुए उन्हें प्रियंका की तारीफ करना जरूरी लग रहा है। ये जरूरत पड़ने पर उत्तर भारतीय बन जाते हैं बाकी इन्हें कोई मतलब नहीं रहता। बिग बी की असल दुनिया इन परिवार तक सिमटी है। यह उसी संगीतकार गीतकार, फिल्म निर्माता की तारीफ करते हैं जहां इनका बेटा, बहु और पत्नी या वह खुद काम कर रहे होते हैं।
चाहता हूं कि आपका लेख राज ठाकरे और उनके खास लोगों तक जरूर पहुंचे। हो सकता है उन्हें सदबुद्धि आ जाए।
-वेद विलास उनियाल

Anonymous said...

vase to jabh bhi main ye blog dekta hun to mujhe kafi sare post dike dete hai or un par comment bhi hote hain. lakin maine pehli bar dekha hai ki logon comment balki pure-pure Ghranth hi likhe die. yahan par mujhe chamchi marne ki durgandh aa rahi hai