भैया इलाहाबादी! आप जो भी हो सामने आइए। आपको अदृश्यमान रहने से हम बलागरों पर भारी विपति आन पड़ी है। हमारे साथ रहने वाले इलाहाबादी तत्वों पर सबसे ज्यादा संकट है। हर कोई उनको शक की निगाह से देखता है। वे बिचारे स्पष्ट ीकरण देते फिर रहे होते हैं। एक-दूसरे को सूंघते हुए बलागर एक-दूसरे पर जासूसी कर रेले हैं। इसमें कई बार ठुकाई भी हो रेली है अपन के यारों की।
इसका कारण यह है कि आपके विचार काफी तूफानी हैं, उनसे इधर अपन के शहर में सुनामी उठ रेली है। अपना कुछ चेहरा मोहरा दिखाओ भाई। ताकि हम आपको अफगानिस्तान की पहाड़ियों में बुश की तरह ढूंढना बंद करें।
आशा है कि भैया इलाहबादी आप इलाहबाद के अमरूद और संगम की तरह दृश्यमान होंगे।
ये इलाहीबख्श का पर्दा हटाइए और अपने तपस्थान से बाहर आइए।
Thursday, 25 September 2008
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5 comments:
माजरा क्या है भाई इलाहाबादी तो हम भी हैं
मगर हमने तो आज तक कोई टिप्पदी बिना नाम के नही की
आप किसे खोज रहे हो ?
कस गुरू! आजकल तो हम भी इलाहाबादी हुइ गए हैंन।
ई कौन है जो छिपा हुआ है। ...दूसरे को तो संकट में मत डालो भाई।
आजकल तो हम भी इलाहाबाद में ही रह रहें हैं ...
जिस दिन आप ख़ुद पर शक करना बंद करेंगे हम को पहिचान जायेंगे. हम भी आप की तरह शरीर धारी आत्मा है. रोज गंगा में डुबकी लगाते है. सरस्वती को खोजते है. अल्लाहः ने आबाद किया था यह मानता था अकबर. बीरबल भी यही का था. निराला से लेकर महादेवी वर्मा तक को देखा है. बेटा इलाहाबादी इतने कच्चे नही होते. संकट तो उनसे दूर भागता है. जिस दिन लादेन सामने आएगा हम भी आ जायेंगे पर आप को प्रयाग आना होगा.
चाणक्य ने कहा, मुण्डे मुण्डे मतिर्भिन्ना, अर्थात जितनी खोपड़ीयां, उतनी ही राय या विचार ।
लोकतंत्र है भइये, सबको कहने दो, सबकी सुनो अपनी भी कह लो क्या दिक्कत है, ''सार सार को गहि रहो, थोथा देओ उड़ाय '' तुलसी या संसार में भांति भांति के लोग, सबसों हिल मिल चालिये नदी नाव संजोग ।
सामने वाला अपनी नजर में सही होता है, लेकिन आपकी नजर में गलत, आप अपनी नजर में सही हो सकते हैं लेकिन दूसरों की नजर में गलत । ये दुनियां इसी सिद्धान्त पर टिकी है ।
माडरेशन लगा दीजिये टिप्पणी पसन्द आये तो प्रकाशित कर दीजिये वरना धता बता दीजिये
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