Saturday, 27 September 2008

निशीथ जोशी की नज्म


पेशे से पत्रकार और संवेदनाओं का समंदर। ऐसा कम ही देखने को मिलता है। आतंकवाद की आग में झुलस रहे हालात को लेकर आहत वरिष्ठ पत्रकार निशीथ जोशी की इस नज्म में ऐसी ही संवेदना दिखती है। उनका कहना है कि अहमदाबाद से लेकर दिल्ली में ब्लास्ट गुजरात से लेकर बटला हाउस के एनकाउंट तक मजहब के नाम पर राजनीत करने वालों की करतूतों ने अन्दर कही आग लगा दी है उसी आग के दरिया डूबकर जो निकला वो लफ्जों में कुछ इस तरह बयां होती है-

हालात
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फसां पर देह रख रख कर
अब वो खिलखिलाने लगी है
खुदा कसम , हद से ज्यादा
खूबसूरत नजर आने लगी है।

तबर से दोस्ती करने के बाद
अब वो तफरीहन खुन्खारी
मचने लगी है।
गैर मुमकिन था इस शहर में
घुस पाना उसका
अब वो हर इन्सान के हाथ में
नजर आने लगी है।
मजहबी खूंआसामियों के इशारे पर
इस अमन पाक शहर को वो
खूं आलूद बनाने लगी है।
सियासी दांव में सन सनकर
अब वो पैदा करने वालों को ही खाने लगी है।

फसां पर देह रख रख कर
अब वो खिलखिलाने लगी है
खुदा कसम , हद से ज्यादा
खुबसूरत नजर आने लगी है।

(फसां-हथियार पर सान लगाने के काम आने वाला पत्थर, तबर-फरसा या कुल्हाडा, खूंआसामियों - खून का व्यापर करने वाले, खूंआलूद- खून से सना हुआ)

7 comments:

seema gupta said...

फसां पर देह रख रख कर
अब वो खिलखिलाने लगी है
खुदा कसम , हद से ज्यादा
खुबसूरत नजर आने लगी है।
" dil ke dard or aasuon ko smetey ek marmsprsee nazm"

Regards

pratik awasthi said...

आपकी उर्दू जुबान के बारे मे पता चला। निश्चित ही आपके इस पहलू के बारे में पता नही था। आज के समय में उर्दू के लफ्ज़ों के अच्छा प्रयोग किया है आपने

अबरार अहमद said...

सर सादर प्रणाम

एक पाक जज्बे से लिखी गई एक संवेदनशील नज्म। जो आज के दौर और हालात में सोचने को मजबूर करती है।

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

बड़े भाई
दिल के गहनतम तल से लिखी गई यह उम्दा नज्म अब मुझे मजबूर कर रही है कि मैं आपके मुख से इसे सुनकर कृताथॆ हूं।

shelley said...

फसां पर देह रख रख कर
अब वो खिलखिलाने लगी है
खुदा कसम , हद से ज्यादा
खुबसूरत नजर आने लगी है।

njm sachmuch achhi lagi. ise post karne k liye dhanwad.

सुप्रतिम बनर्जी said...

सर,
प्रणाम। नज़्म बहुत अच्छी लगी। आप यूं ही लिखते रहिए। और मेरी तो गुज़ारिश है कि कविताओं के साथ-साथ कुछ सम-सामयिक टिप्पणियां और लेख भी लिखें।
सुप्रतिम।

Bhupender bhatia said...

really, heart touching nazam.