Tuesday, 9 September 2008

भाई जरा देख के चलो


सड़क पर बढ़ती गाड़ियों की संख्या। चारों तरफ भागती अंधा धुंध गाड़ियां। आए दिन सड़कों पर होते हादसे। फिर भी रफ्तार पर ब्रेक नहीं लगती। तेज रफ्तार के चक्कर में कई लोग रोज अपनी जान गंवाते है तो कई दूसरों को भी अपनी गलती की सजा दे देते है। रोजाना समाचार पत्रों के पन्नों पर सड़क हादसे में मौत के समाचार छपते है। हम उसे देखकर भी अनदेखा कर देते है। फिर निकल पड़ते है उसी रास्तें पर। थमती जिंदगी के आगे रफ्तार कम नहीं करते। रोजाना सड़कों पर बढ़ते हादसों से भी हम सीख नहीं ले रहे। सड़क कर निकलते समय हम अपने परिवार के बारे में अगर सोच ले तो शायद हमारी बढ़ती रफ्तार पर खुद-खुद कंट्रोल हो जाएगा। गाड़ी चलाते समय मोबाइल को सुनना, तेज रफ्तार से गाड़ी चलाना, तेज म्यूजिक, नशे का सेवन सब हमारी जान के दुश्मन है। इन सबके बारे में समझ कब आएगी। थोड़ी सी जल्दबाजी कितनी देर कर सकती है, इसका अंदाजा न तो कोई लगा रहा है और न ही किसी के पास इस बारे में सोचना का समय है। तेज रफ्तार के चलते नुक्सान ही होता है। कभी किसी से टक्कर तो कभी झग़ड़ा। कई बार तो जीवन लीला का अंत। अकसर हमारी छोटी से गलती, हमारे लिए जीवन भर की सजा भी बन सकती है। जरा देख कर चला जाए तो हम अपने साथ-साथ कई जिंदगियां बचा सकते है। कम से कम सड़क कर चलते समय सावधानी बरत कर। अनमोल जीवन को बचाने के लिए रफ्तार पर रखें कंट्रोल।

6 comments:

विवेक सिंह said...

अच्छा है. बेहतरीन है . बधाई.

ओमप्रकाश तिवारी said...

बेहतरीन है

Anonymous said...

bina phadhe hi kha sakta hun bdiya h. jese do bandhuon ne kha h

श्रीकांत पाराशर said...

Aapki baat gour karne layak hai. yah sahi hai ki jindgi anmol hoti hai use yon hi gavan dena bevkufi hai. thoda sa dhyan rakhne men kya burai hai ?

Suneel R. Karmele said...

गति‍ और ब्रेक ये दोनों चीजें एक दूसरे से वि‍परीत हैं। जो इन दोनों में सामन्‍जस्‍य बैठा ले वही इस रेस को जीत लेता है। वेद जी को बधाई;;;;;;;;
बहुत दि‍नों से आपको ढुंढ रहा था, आखि‍र आप और वि‍जय शंकर चतुर्वेदी जी ब्‍लॉग्‍स पर मि‍ल ही गये।

Anonymous said...

मृत्युंजय जी ये अच्छा किया कि गूगल ट्रांसलेशन टूल डाल दिया. इससे कमेन्ट डालने में आसानी होगी.
---अमित