भैया इलाहाबादी
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तो लो भैया हम आ गए, बजा ली है ताल हमने। छोरा गंगा किनारेवाला। जो कुछ दिया है उसी गंगा मैया ने। जिसे पीयरी चढा कर सजनवा से मिलन की बात प्रेमिका कह सकती है। चलो उस पार्टी की बात की जाए, जिसकी अवैध औलादों ने राजनीती को ही गन्दला कर दिया। एक बात तो सब जानते हैं की जब कोई चरित्रहीन हो जाता है तो उसकी औलादें कैसे चरित्रवान रह सकती हैं। यही हाल भारतीय राजनीती में कांग्रेस का है। आजादी के बाद मेरे ख्याल से तीन ही धाराये थीं राजनीती की। एक वाम मार्गी दूसरे दक्षिण मार्गी। तीसरा बीच पटिया याने मध्य मार्गी। यही तीसरे कांग्रेसी कहलाते हैं। जब भी टूटे तो यही टूटे। नए कुनबे बनते गए। सब चिल्लाते रहे तुम चरित्र हीन हो, बेईमान हो कांग्रेस, कोई सुनाता क्यों। जब जमींदारों ने नहीं सुना और ताकत के नशे में मगरूर रहे तो तुम भी तो वही थे। पार्टी से बड़े नेता हो गए। आज भी वही हाल है। पार्टी की नयी नयी औलादें पैदा होती रहीं। नहीं तो कहाँ से आए समाजवादी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियाँ। जो एकलव्य की तरह लगातार अभ्यासरत रहे, हाथी पर सवार हो आ गए हैं। अब जब औलाद ही अवैध हैं, तो राजनीती में गन्दगी आयेगी ही। इसलिए हालत ऐसे हैं। पर बाढ़ एक सीमा तक आती है, फ़िर तो पानी वापस जाता ही है। सृष्टि की रचना से लेकर आज तक यही होता आया है। पानी के लौटने के बाद महामारी भी फैलती है पर जमीन बहुत उपजाऊ हो जाती है। भारतीय राजनीती में भी अब पानी वापस जाने की स्थिति है। महामारी और उपजाऊ जमीन की कुछ समय बाद बीमारिया ख़त्म हो जायेंगी और राजनीती में फ़िर ऐसे लोग आयेंगे जो सिस्टम को बदलेंगे न की सिस्टम के गुलाम हों जायेंगे। राजनीती में कितने मोड़ आए। पहले आजादी के मतवाले फ़िर नेताओं के चमचे फ़िर हवाई नेता फ़िर पैसेवाले फ़िर बाहुबली अपराधी अब फ़िर युवा पढ़े लिखे आ रहे हैं। संकेत सुखद है। जय गंगा मैया की।
Tuesday, 16 September 2008
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4 comments:
भैया इलाहाबादी जी
ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है।
भारतीय राजनीति में सुखद संकेत तो कहीं से भी नहीं है।
रही बात कांग्रेस की तो आजादी के आंदोलन के समय सन् १८८५ में कांग्रेस की स्थापना एक अंग्रेज अफसर ए.ओ. ह्य ूम ने कराई थी। तब इसका उ ेश्य अंग्रेजों के लिए सेफ्टी वॉल्व की तरफ काम करने का था। इस काम को इस पार्टी ने कई सालों तक किया भी। वह तो जनता का दबाव ऐसा बनता गया कि एक दिन इस पार्टी ने संपूर्ण आजादी की मांग अंग्रेजों से की नहीं तो यह लोग तो सत्ता का सुख भोगने में ही व्यस्त थे। बहुत अंतरविरोध है इस राजनीतिक दल में। कहा जा सकता है कि जिस दल का उ ेश्य उसके गठन के समय ही गलत था वह बाद में कितना सही हो पाएगा?
आज तो जरूरत चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह की है। बेशक भगत सिंह की मूर्ति संसद में पहंुच गई, लेकिन उनकी विचारधारा तो हाशिए पर है। जिस दिन वह विचारधारा संसद तक पहंुच जाएगी देश का कल्याण हो जाएगा।
स्वतंत्रता आन्दोलन का नेतृत्व करने के कारण कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में थी. यह भूमिका अगर वह ठीक से निभाती तो ये राजनीती की अवैध औलादें नजर नहीं आतीं.
उम्मीद अच्छी है कि कुछ समय बाद बीमारिया ख़त्म हो जायेंगी और राजनीती में फ़िर ऐसे लोग आयेंगे जो सिस्टम को बदलेंगे न की सिस्टम के गुलाम हों जायेंगे।
बलाग की दुनिया में आपका स्वागत है। आपके विचारों से लग रहा है कि हमें आने वाले दिनों में मानव चेतना को जगाने वाली सामग्री मिलती रहेगी। लगो रहिए भैया इलाहाबादी
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